scriptआखिर क्यों! इन गरीबों तक पहुंचने से पहले दम तोड़ देती है सरकारी योजना | Bansfor community not get benefit of any scheme of UP government families remain hungry in UP | Patrika News
आजमगढ़

आखिर क्यों! इन गरीबों तक पहुंचने से पहले दम तोड़ देती है सरकारी योजना

यूपी में एक तबका ऐसा भी है जो आज भी आदिवासी जैसा जीवन जीता है। इनके सिर पर न तो छत होती है और ना ही नियमित रोजगार। यहां तक कि इन्हें दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं होती।

आजमगढ़Dec 06, 2022 / 07:26 am

Ranvijay Singh

अगर सरकार दे देती गैस तो नहीं फूंकना पड़ता चूल्हा

अगर सरकार दे देती गैस तो नहीं फूंकना पड़ता चूल्हा

बांसफोर समाज की गिनती कभी संपन्न समाज में होती थी। इनके बनाए गए बांस के प्रोडक्ट्स की हर घर में डिमांड होती थी। शादी-विवाह के सीजन में इनकी डिमांड काफी बढ़ जाती थी। अब आधुनिक यंत्रों ने इनसे इनका रोजगार छीन लिया है। अगर शादी कार्यक्रम न हों तो शायद इन्हें काम भी नसीब न हो।

सरकार भी इनकी अनदेखी कर रही है। इससे जहां सैकड़ों साल पुराना उद्योग खत्म हो रहा है। वहीं बांसफोर दो वक्त की रोटी के मोहताज हो गए हैं। योगी सरकार ने बासफोरों के ट्रेनिंग की योजना भी चलाई। लेकिन विभाग ने ये रिपोर्ट लगा दी कि यहां कोई बांसफोर ट्रेनिंग ही नहीं लेना चाहता। जबकि जिला मुख्यालय पर दर्जनों बांसफोर निम्न स्तर का जीवन जी रहे हैं।

इसी तरह झोपड़ी में दिन गुजारते हैं बांसफोर
IMAGE CREDIT: patrika

आदिवासी जैसी जिंदगी जी रहे बांसफोर
बांसफोर समाज आज प्रदेश के सबसे पिछड़े लोगों में शामिल है। इस समाज के लोगों के पास अपने घर तो दूर झोपड़ी तक नहीं है। दो वक्त की रोटी भी इन्हें बड़ी मुश्किल से मिलती है। इनका शिक्षा का स्तर भी काफी निम्न है। इस समाज के लोग सिवान में झोपड़ी डाल किसी तरह दिन काट रहे है।

कभी इनकी कला की थी कीमत
दो दशक पहले तक इनकी कला की तूती बोलती थी। हुनरमंद बांसफोर बांस को फाड़ कर अपनी करामाती उंगलियों से डाल, डलिया, बिनौठी, मौर, दउरी, खांची, आदि तैयार करते थे। लोगों के घर में होने वाली शादी विवाह में इसका उपयोग खूब होता है। इनके बनाए डाल में सजाकर दुल्हन के लिए डाल के कपड़े भेजे जाते हैं। इसे शुभ भी माना जाता है।

फसल के सीजन में इनकी बनाई गई दौरी, खांची की खूब मांग होती थी। फसल मड़ाई से लेकर अनाज को साफ करने तक में उसका इस्तेमाल होता था। इससे इनकी अच्छी आमदनी होती थी। अब सामान्य दिनों में इस समाज के लोग भुखमरी के शिकार रहते हैं।

 

यह भी पढ़ेंः पति की डायलिसिस का दर्द देख नहीं पाई आकांक्षा, किडनी देकर बचाई जिंदगी

 

हर घर से मिलता था अनाज और कपड़ा
सुरेश बांसफोर बताते हैं कि दो दशक पहले तक हमें हर परिवार अपनी प्रजा मानता था। विवाह जैसे कार्यक्रम में हम बांस के बने सामान पहुंचाते थे। बदले में हमें कपड़ा सहित अन्य उपहार मिलता था। जब फसल तैयार होती थी तो लोग बांसफोर, नाई, लोहार, कहार, कुम्हार का हिस्सा निकाल देते थे। अब यह चीजें नहीं रही। सबकुछ रेडीमेड हो गया है। बस हमें वैवाहिक कार्यक्रम में ही पूछा जाता है।

शहर के कालीनगंज में रहते है बांसफोर
शहर के कालीनगंज में बांसफोर समाज के आधा दर्जन परिवार रहते हैं। बंधे पर नदी के किनारे जिंदगी में गुजारना इनकी नियत बन चुकी है। सरकार ने कुछ लोगों को कांशीराम आवास में घर दिया है लेकिन सुदूर गांव में जहां इन्हें रोजगार नहीं मिलता। बड़ी संख्या में लोग आज भी आवास से वंचित हैं। यही नहीं तमाम लोगों को अब तक उज्जवला योजना के तहत गैस भी नहीं मिली है। आज भी चूल्हे पर ही इनकी रोट पकती है।

बांस के उत्पाद तेयार करते कारीगर
IMAGE CREDIT: patrika

क्या कहते हैं बांसफोर समाज के लोग
बांसफोर समाज के रंजन, साधना, अमरनाथ, अनीता आदि का कहना है कि सभी के लिए सरकार योजनाएं चलाती है। हमारे लिए प्रशिक्षण आदि से संबंधित आज तक कोई योजना नहीं चलाई गई। यहां तक कि हमें आवास व गैस भी नहीं मिली। सरकार को बांस उद्योग को बढ़ावा देने पर काम करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इनकी मांग है कि पाटरी की तरह बांस के बने सामानों का प्रमोशन होना चाहिए। हमें सरकार बाजार उपलब्ध कराए तो हमारे अच्छे दिन आ सकते है। आज हालत ये है कि अगर शादी का सीजन न आए तो हमारे बच्चे साल भर भूखों मरें।


क्या कहते हैं अधिकारी
प्रबंधक जिला उद्योग केंद्र प्रवीण मौर्य का कहना है कि विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के तहत बांसफोर समाज के लोगों को प्रशिक्षित कर टूल किट उपलब्ध कराने की योजना थी। पिछले दो साल में एक भी आवेदन नहीं आया। इसलिए शासन को पत्र लिखकर इसे दूसरे ट्रेड में बदलने की अपील की गई है। अगर 25 लोग आवेदन करें तो वे प्रशिक्षण करा सकते हैं।

 

यह भी पढ़ेंः पहले ‌पिलाई शराब फिर खिलाया खाना, अप्राकृतिक दुष्कर्म के विरोध में कर दी नाबालिग की हत्या

 

बेसब्री से करते है लगन का इंतजार
राजेंद्र कहते हैं कि बांसफोर समाज के लोग हमेशा शादी सीजन आने का इंतजार करते हैं। इसके पीछे कारण ये है कि लगन के समय डाल 151 रुपए से 300 रुपए तक, छबिया 80 से 100 रुपए जोड़ा, बेनौठी 150 रुपए तक बिक जाती है।

इस बार महंगाई के चलते बांस की आपूर्ति भी मुश्किल से हो पा रही है। ठेकेदार से बांस खरीदना पड़ रहा है। शुभ कार्याे में प्रयोग होने वाले सामानों को खरीदना लोगों की मजबूरी है। ऐसे में लगन के दौरान लोग आएंगे यह सोचकर वे सामान तैयार कर रहे हैं।

Hindi News / Azamgarh / आखिर क्यों! इन गरीबों तक पहुंचने से पहले दम तोड़ देती है सरकारी योजना

ट्रेंडिंग वीडियो