गोपाल शर्मा इसका पूरा ब्योरा लिखते हैं। वह लिखते हैं कि मथुरा का नरहोली थाना तो दरिंदगी का प्रतीक बन गया। मथुरा के कलेक्टर, सिटी मजिस्ट्रेट और थानाध्यक्ष ने राजस्थान से मरुधर एक्सप्रेस से लखनऊ आ रहे कारसेवकों को मथुरा में उतार लिया।
आरएसएस के प्रांत कार्यवाह संस्कृत विद्वान गिरिराज शर्मा के अनुसार मथुरा स्टेशन पर ही कारसेवकों की निर्ममता से पिटाई शुरू हो गई। मथुरा के कलेक्टर राजीव कुमार और सिटी मजिस्ट्रेट राममोहन सक्सेना की मौजूदगी में रामभक्तों की लाठी, डंडों, लात और घूसों से बेदम होने तक पिटाई की गई।
जयपुर में झोंटवाड़ा के पवन शर्मा को पीटते-पीटते पुलिस की दो लाठियां टूट गईं। पुलिस अधिकारी ने कहा कि बोलो आडवाणी चोर है, तब छोड़ देंगे। पवन शर्मा मार खाते बेहोश हो गए लेकिन नहीं बोले। जयपुर के ही वकील कैलाशनाथ भट्ट को जमकर पीटा गया और कहा गया तुम वकील हो और तुमकों नहीं पता कि तुम्हारे अपराध की कौन सी धारा बनती है।
कारसेवक पिटते रहते और मुंह से उफ तक नहीं निकालते तो पुलिस के डंडे और तेज बरसने लगते। 24–25 अक्तूबर 1990 की सुबह तक सभी कारसेवकों की पिटाई होती रही। अगले दिन सुबह पुलिस वालों ने कहा कि तुम कारसेवक ही हो, तो चलो थाने की सफाई करो। फिर विदा करते समय मारकर कहते सीधे अपने घर जाओ, जाकर बताना कैसी कारसेवा हुई।
उन्नाव और उरई की कहानी
26 अक्टूबर 1990 का दिन। उन्नाव जेल में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कारसेवक बंद किए गए थे। सभी कारसेवक सुबह रामभजन गाते तभी जेल की घंटी बजी। सजायाफ्ता कैदी हाथ में डंडे लिए कारसेवकों की तरफ दौड़ पड़े।
कारसेवक अवाक रह गए, ये क्या हो रहा है। सबकी जमकर पिटाई हुई। थोड़ी देर बाद पुलिस और जेल कर्मचारी आए और लाठी चार्ज कर दिया, वह भी कारसेवकों पर ही हुआ। फिर कैदी बैरकों में वापस चले गए। लेकिन बैरक संख्या 21 में पिटाई से बचने के लिए बैठे कारसेवकों पर गोलियां चला दी गईं। एक दर्जन कारसेवक उन्नाव जिला अस्पताल ले जाए गए। प्रशासन ने माना कि 16 राउंड गोलियां चलाई गईं।
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इसी तरह सुल्तानपुर जिला जेल में कारसेवकों का रुपया-पैसा छीन लिया गया। लाठी चार्ज हुआ। सीतापुर में कारसेवकों को घेरकर पीटा गया। पोलियो से पीड़ित एक कारसेवक के पैर तोड़ दिए गए। गुप्तांगों में डंडे डाले गए। अमानवीयता की सारी हदें पार हुई।
इसी दौरान विश्व हिंदू अधिवक्त संघ ने हाईकोर्ट में याचिका डाली कि अयोध्या में चौदह कोसी, पंचकोसी परिक्रमा के लिए आने वाले भक्तों को परेशान न किया जाए। हाईकोर्ट के न्यायाधीश बृजेश कुमार और हैदर अब्बास की खंडपीठ ने फैसला विश्व हिंदू अधिवक्ता संघ के पक्ष में दिया और सरकार को आदेश दिया गया कि परिक्रमा करने वालों को परेशान न किया जाए।
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एक अन्य खंडपीठ ने न्यायमूर्ति एससी माथुर और डीके त्रिवेदी ने आंध्रप्रदेश के सौ से अधिक भक्तों को परिक्रमा में जाने के निर्देश सरकार को दिए। आंध्रप्रदेश के 509 कारसेवकों की जेलों से रिहाई का आदेश भी उच्च न्यायालय ने दिया। कारसेवक आदेश की प्रतियां लेकर इधर-उधर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के पास भटकते और गिड़गिड़ाते रहे लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। सरकार ने न्यायालय के आदेश को कूड़े में डाल दिया।
हमारे जिंदा रहते कारसेवकों को छू नहीं सकते… पटना बिहार से आए कारसेवक काशी नाथ पाण्डेय बताते हैं कि कारसेवा के दौरान प्रांतवाद, जातिवाद और भाषावाद की दीवारें गिर चुकी थीं। पुलिस से बचते किसी तरह हम आगे बढ़ रहे थे। रात हुई तो एक गांव में ठहरे। गांव के प्रधान प्रमोद सिंह और उनके पड़ोसी रामनरेश सिंह के यहां भोजन के लिए हम लोग बैठै। तभी कुछ बच्चे भागकर आए और बताया कि पुलिस आ रही है।
लेकिन गांव के लोगों ने लाठी-डंडे निकाल लिए, कुछ युवकों ने जमीन में भाला गाड़ दिया और पुलिस से कहा, ‘हमारे जिंदा रहते कारसेवकों को छू नहीं सकते।’ पुलिस को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। सुबह विदा करते समय सबकी आंखे नम थी।
देवरिया जिला के कारसेवक इंद्रहास पाण्डेय बताते हैं, पैदल चलते थक जाते तो ग्रामीण कई जगह पैर दबाने लगते, बच्चे तेल मालिश करते। बस्ती रेलवे स्टेशन के पास एक चाय की दुकान खुली थी। जब हम वहां चाय पीने गए तो पता चला कि दुकान पर कुछ मुस्लिम बैठे हैं। कहीं पुलिस को सूचना न दे दें। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया उल्टे खूब आवभगत की। फिर गांव के ही एक घर पर भेजवा दिया जो स्थानीय कार्यकर्ता थे।’
राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, केरल, गुजरात अनेक प्रांतों के कारसेवकों को उत्तर प्रदेश की जनता ने हर संभव मदद की। अतिथि देवो भव गांव-गांव में देखने को मिला। बहरहाल हम पिछले अंक में 30 अक्टूबर और दो नवंबर को अयोध्या में मुलायम सरकार के खून की होली की कथा विस्तार से बता ही चुके हैं।
कल के अंक में हम आपको बताएंगे कि जब कारसेवक अयोध्या में जन्मभूमि की तरफ बढ़ रहे थे। तो अयोध्या वासी उनपर पानी फेंक कर गीला करते जिससे आंसू गैस का प्रभाव कारसेवकों पर कम हो। एक ऐसी ही महिला जो छत से पानी फेंक रही थी, दूसरी छत पर खड़ा पुलिस का जवान रायफल की नाल उधर घुमा दिया। बोला भाग जा, वरना गोली मार दूंगा। महिला छाती ठोककर जोर से चिल्लाई नहीं जाऊंगी, चला गोली…।