यही कारण है कि सत्याग्रह से पहले ही विहिप और भाजपा के नेता शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए कहने लगे। भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी भी जगह-जगह शांतिपूर्ण आंदोलन की बात करने लगे। सत्याग्रह की तिथि घोषित हो चुकी थी आगामी 6 दिसंबर 1990 को अयोध्या से सत्याग्रह शुरू होना था।
लेकिन मुलायम सरकार की युद्ध जैसी मोर्चेबंदी को ध्वस्त कर लाठियां, गोलियां खाते जिन कारसेवकों ने बाबरी गुंबद पर केसरिया लहरा दिया था। उनको काबू रख पाना सबसे बड़ी समस्या थी। IMAGE CREDIT: सत्याग्रह के दौरान मामला उग्र न हो जाए, इसे लेकर सभी के मन में आशंका बनी हुई थी। सरकार ने अपनाया नरम रुख
इस बार प्रदेश सरकार ने कारसेवा आंदोलन के लिए नरम रुख अपनाया। पहले की तरह न तो ट्रेन और बस रोकी गई ना ही लोगों के आवागमन पर रोक लगाया गया। ना ही मुलायम सिंह यादव के वह शब्द गूंज रहे थे कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता। बल्कि 5 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के गृह सचिव ने कहा कि अयोध्या में परिंदा के पर मारने के बजाए अब जल, थल, नभ तीनों रास्तों से लोगों के आने की छूट है। कुछ होगा, कुछ कहना संभव नहीं है। लेकिन जैसे हालात होंगे वैसे ही उनसे निपटा जाएगा।
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इसका मतलब यह भी नहीं था कि सत्याग्रहियों को लेकर सरकार पूरी तरह निश्चिंत थी। बल्कि सुरक्षा पहले की तरह ही चौकस रखा गया। रास्तें में आड़े-तिरछे ड्रम और बैरिकेट लगाए गए थे। सीसीटीवी कैमरे आदि पहले की तरह ही थे। मेटल डिटेक्टर पहले जैसे ही थे। लेकिन अब सख्ती कम थी और चेकिंग भी की जा रही थी लेकिन लोगों के आने जाने पर कोई पाबंदी नहीं रखी गई थी।
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इसका मतलब यह भी नहीं था कि सत्याग्रहियों को लेकर सरकार पूरी तरह निश्चिंत थी। बल्कि सुरक्षा पहले की तरह ही चौकस रखा गया। रास्तें में आड़े-तिरछे ड्रम और बैरिकेट लगाए गए थे। सीसीटीवी कैमरे आदि पहले की तरह ही थे। मेटल डिटेक्टर पहले जैसे ही थे। लेकिन अब सख्ती कम थी और चेकिंग भी की जा रही थी लेकिन लोगों के आने जाने पर कोई पाबंदी नहीं रखी गई थी। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पहल केंद्र में सरकार बदल चुकी थी। आडवाणी की रथ यात्रा में बिघ्र डालने के कारण राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से भारतीय जनता पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया था। जिसके बाद चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने थे। वह विश्व हिंदू परिषद के शांतिपूर्ण सत्याग्रह के फैसले से गदगद थे। हांलाकि चंद्रशेखर ने बाबरी एक्शन कमेटी और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को आमने-सामने बैठा कर बातचीत से कोई सर्वमान्य हल निकालने का प्रयास भी शुरू कर दिया था। अब विश्व हिंदू परिषद एक साथ तीन मोर्चे पर लड़ रही थी।
1-वार्ता के माध्यम से हल निकालना। 2-न्यायालय के माध्यम से समाधान की तलाश। 3-आंदोलन के रास्ते पर चलते रहना। 11 नवंबर 1990 को नई दिल्ली में श्रीराम कार सेवा समिति का गठन विश्व हिंदू परिषद ने किया। इसमें भी दो फैसला किया गया।
1-आंदोलन के माध्यम से अयोध्या पर दबाव बनाए रखना है। 2-30 अक्टूबर और दो नवंबर को शहीद हुए कारसेवकों को श्रद्धांजली प्रत्येक गांव में दी जाएगी। IMAGE CREDIT: जैसे हालात होंगे वैसे ही उनसे निपटा जाएगा। इसी बैठक में यह भी बात आई कि सरकार के लिए लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है। रामभक्तों का खून नाहक नहीं बहना चाहिए। बल्कि अब देश में ऐसा माहौल बनाना होगा कि आम आदमी राम मंदिर के पक्ष में खुलकर खड़ा हो जाए। इस तरह विश्व हिंदू परिषद ने तय किया कि आगामी छह दिसंबर 1990 को शांतिपूर्ण सत्याग्रह के माध्यम से गिरफ्तारी देने का सिलसिला शुरू किया जाएगा। केंद्र की चंद्रशेखर सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिया कि सत्याग्रह के कार्य में किसी प्रकार की बाधा नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। इसलिए स्थानीय प्रशासन और पुलिस का व्यवहार भी सहयोगात्मक हो गया।
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दर्शनार्थियों को बार-बार मेटल डिटेक्टर से गुजरना पड़ता। जगह-जगह तलाशी देनी पड़ती। फिर भी अधिकारी इस बात को लेकर परेशान थे कि न जाने कब क्या परिस्थिति बन जाए। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे। पुलिस महानिदेशक व्यवस्था योजना को अंतिम रुप दे रहे थे। अयोध्या में हजारों कारसेवकों की मौजूदगी ने पुलिस की नींद उड़ा दिया था। जारी रखेंगे। कल के राममंदिर कथा के अंक में हम सत्याग्रह पर विस्तार से चर्चा करेंगे।