शूर्पणखा के द्वारा प्रेरित रावण सीताहरण में सहायता मांगने जब मारीच के पास गया तो मारीच को प्रोत्साहित करते हुए कहता है कि राम तुम्हारे समान समर्थ नहीं है। इस पर मारीच कहता है कि रावण तुमको यथार्थ का ज्ञान नहीं है। दैत्यराज बलि और नमुचि भी श्रीराम का युद्ध में सामना नहीं कर सकते। मारीच राक्षस है और रावण का सहयोगी है, फिर भी वह श्रीराम के महत्त्व और पराक्रम को स्वीकार करता है। यही रामत्व का प्रकाश है।
‘जीवन में राम’ भाग 2: खर-दूषण हों या शूर्पणखा, दण्डित होकर भी श्रीराम की निन्दा नहीं करते किष्किन्धा में खड़े श्रीराम बाली को कहते हैं कि वन-पर्वतों समेत यह सारी भूमि इक्ष्वाकु वंश की है, हम इसकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। पराक्रम का अभिप्राय किसी को भयाक्रान्त करना नहीं, अपितु लोक को भयमुक्त करना है। श्रीराम घोषणा करते हैं- ‘क्षत्रियैर्धार्यते चापो नार्त्तशब्द: भवेदिति।’ क्षत्रिय इसलिए धनुष धारण करते हैं कि कहीं पीड़ित स्वर न सुनाई दे। व्यक्ति और समाज को अभय करने की यह प्रतिज्ञा श्रीराम को लोकरक्षक बनाती है।
‘जीवन में राम’ भाग 1: हनुमंत पीठ के महंत मिथिलेश नन्दिनी शरण का आलेख, दर्पण देखें या श्रीराम को वस्तुत: श्रीराम का पराक्रम निर्बलों का बल है। हारते हुए, वंचित होते हुए, पीछे छूटते हुए लोगों को साथ लेने और सहेजने में ही इसकी चरितार्थता है। यह पराक्रम सामाजिक शान्ति को बनाए रखने का आधार है। श्रीराम का पराक्रम लोक को निर्भयता प्रदान करता है और इस प्रकार श्रीराम को जन-जन की चेतना में नायक के रूप में प्रतिष्ठित करता है।