संसार में आदर्श मनुष्यता को संभव बनाने का अनुष्ठान करते हुए महर्षि वाल्मीकि ने उसके प्रथम लक्षण का संकेत ‘गुणवान’ कहकर किया- ‘कोन्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान।’ श्रीनारद जी ने इसका उत्तर देते हुए श्रीराम का परिचय दिया। वह परिचय आंगिक सौष्ठव को बताते हुए सौन्दर्य गुण, बल का वर्णन करते हुए शौर्य गुण, क्षमा-करुणा आदि का संकेत करते हुए औदार्य गुण, सत्य और धर्मनिष्ठा के माध्यम से सौशील्य आदि गुणों को व्यक्त करता है।
अपने रूप को संवारने-निखारने की एक सहज व्यवस्था है दर्पण देखना। दर्पण यह नहीं बताता कि रूप कैसा होना चाहिए पर उसमें स्वयं को देखते हुए अपनी सही पहचान हो जाती है। दर्पण का यही गुण उसे ‘आदर्श’ नाम देता है। मानव-चरित्र श्रीराम में अपना प्रतिबिम्ब देख सकता है और इस प्रकार अपने को स्वरूप के अनुरूप संवार सकता है। श्रीराम के चरित्र का ध्यान करते हुए उनके चारित्रिक गुण कई आयामों में स्पष्ट होते हैं। महाराज दशरथ श्रीराम को पुत्र के रूप में देखते हैं, आज्ञाकारी, वशवत्र्ती और सत्यनिष्ठ सन्तान की भूमिका में श्रीराम अद्वितीय हैं। कहा गया है कि जो अपने आचरण से पिता को सन्तुष्ट करे वही सच्चा पुत्र है, श्रीराम के आचरण पर महाराज दशरथ गर्व करते हैं। श्रीराम को युवराज बनाने का उनका संकल्प भी गुणों पर केन्द्रित है।
– आचार्य मिथिलेश नन्दिनी शरण
सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास, श्रीअयोध्याजी
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