प्रयाग के नैनी जेल से सैकड़ों कारसेवक फरार हो गए। लखनऊ के दुबग्गा अस्थाई जेल से दो हजार कारसेवक निकल भागे। मुरादाबाद, बरेली, देवरिया, गोरखपुर, बस्ती अनेक जगहों से जेलों से फरार कारसेवक अयोध्या पहुंचने लगे। हजारों की तादात में कारसेवक अयोध्या, फैजाबाद में गिरफ्तार हुए। लेकिन इन्हें कहां रखे। सभी जेल तो ठसाठस भर चुकी हैं।
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स्कूलों, अस्पतालों, मैरिज लॉन को बनाया जेल 27 अक्टूबर 1990 दोपहर दो बजे देवरिया में सूचना आई कि पूर्वोत्तर (आसाम, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल) से दो हजार कारसेवक गुवाहाटी से भटनी जंक्शन पहुंच रहे हैं। भटनी (देवरिया जिला) के आगे ट्रेन सेवा निलंबित कर दी गई है। अब इन्हें अयोध्या भेजना, रास्ता दिखाना, भोजन की व्यवस्था करना स्थानीय कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। इधर, पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए सभी पदाधिकारी, कार्यकर्ता भूमिगत हो चुके थे।
हजारों पकड़कर जेल भेजे जा चुके थे। प्रत्येक गाड़ी चेक की जा रही थी। रोडवेज की बसें निरस्त कर दी गई। जो बसें चल रही थीं उनपर पुलिस की कड़ी निगरानी और जगह-जगह चेकिंग होता। रेलवे स्टेशन पर पुलिस भारी मात्रा में मौजूद थी। जैसे ही ट्रेन से कोई उतरता कारसेवक मानकर गिरफ्तार कर लेते।
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क्या सूशना है ? मुश्किल से पता चला वह रेलवे स्टेशन के आगे एक झोपड़ी में शाय (चाय)पी रहे हैं। आखिकार मिल गए। गुवाहाटी से ही रेडियो लेकर आए थे। रेडियो में समाचार सुन रहे थे। उनको कोडवर्ड बताया गया जिससे वह विश्वास कर लें कि हम असली कार्यकर्ता हैं। पुलिस के आदमी नहीं हैं।
पूछे क्या सूशना है? असमिया भाषा में च को श बोलते हैं। सूचना दे दी गर्ई कि अब आपको हमें देखते हुए यहां से आगे 12 किलोमीटर खेत-खेत होते हुए चलना है। उन्होंने असमिया भाषा में अपने साथ बैठै एक युवक को कुछ कहा और हमसे कहा शलिए (चलिए)…
करीब पचास से सौ मीटर, दो सौ मीटर की दूरी बनाकर अलग-अलग जत्थे, अकेले या एक दो की संख्या में कारसेवक चलने लगे। पुलिस से बचने के लिए हर संभव उपाय होने लगा। भाषा, चालढ़ाल, किसी भी गतिविधि से किसी को न पता चले की हम कारसेवक हैं। शुरू के तीन किलोमीटर मुख्यमार्ग से पैदल चले दूसरी तरफ सड़क के समानांतर रेलवे ट्रैक और उस तरफ गड्ढा था।
तभी पुलिस की जीप आती दिखी। तो हम खेत में से होते हुए रेलवे ट्रैक पारकर गड्ढे में चले गए। कारसेवक भी तुरंत ऐसा ही किए। अब खेत-खेत, गढ्डा होते हुए चलने लगे। भटनी से सलेमपुर आना था। जहां से बस से गोरखपुर जाना था। सलेमपुर करीब तीन किलोमीटर रह गया तबतक शाम के छह बजे चुके थे।
कुछ कारसेवक बस स्टैंड के पास एक खाली गोदाम में पहुंचा दिए गए। जहां जमीन पर बिछाकर वह सो गए। जबकि करीब एक हजार कारसेवकों को शहर से पहले ही गांवों में लोगों के घरों में रोक दिया गया। बड़ी मुश्किल थी, क्या करें, इनको कहां रोके। गांव के प्रधान से सारी बात बताई गई। रातभर रुकने और पुलिस से बचने का इंतजाम कर दीजिए। ग्राम प्रधान सहर्ष तैयार हो गए। गांव के घर-घर में आठ-दस कारसेवक रोक दिए गए। उन्होंने भरोसा दिया कि निश्चित होकर अब आपलोग जाओ। पुलिस गांव में घुसने न पाएगी।
रामभक्तों के दमन की यह कथा कल के अंक में भी जारी रखेंगे।