लखनऊ से आदेश पाकर केवल दस अफसरों का गिरोह अयोध्या में कर रहा है गोलीबारी
2 नवंबर 1990 को आपरेशन कारसेवक में नरसंहार के बाद कमांडेंट सम्पत ने फैजाबाद के जिलाधिकारी रामशरण श्रीवास्तव को धक्का मारा और कहा तुम कौन हो हमे रोकने वाले, हम गोली चला रहे हैं, गोली चलायेंगे, तुम्हे गोली चलाने के आदेश पर हस्ताक्षर करने पड़ेगे। आइए जानते है राममंदिर कथा के 48 वें अंक में विस्तार से।
30 अक्टूबर की पराजय का बदला लेने का काम गुप्तचर विभाग के प्रमुख रामआसरे को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सौंपा था।
Ram Mandir Katha: 30 अक्टूबर 1990 और दो नवंबर 1990 का नरसंहार के बाद असामाजिक तत्वों का मनोबल भी बढ़ गया। वह पुलिस के वेश में कारसेवकों पर हमला करने लगे। दूसरी तरफ पुलिस मकानों पर चढक़र, दरवाजे तोडक़र कारसेवकों की पीटाई करने लगी थी। कारसेवकों ने लडड्न नाम के गुंडे को पकडक़र पुलिस को सौंपा था। जो तत्कालीन सांसद मुन्नन खां का आदमी था। अयोध्या और आसपास की जनता में सरकार और पुलिस के लिए घृणा फैल गया था।
दो नवंबर को मारे गए जिन कारसेवकों का पोस्ट मार्टम हुआ उनमें
रमेश पाण्डेय
महावीर अग्रवाल
संजय कुमार
रामकुमार कोठारी
शरद कोठारी
सेठाराम
महेंद्र अरोड़ा
रामअचल गुप्त
राजीव तिवारी
श्रीराम यादव
रामदेव यादव
महेश राम
अजय महाजन
भगवान सिंह
दो अज्ञात पोस्टमार्टम संख्या 356 और 360
घायलों की संख्या कई हजार थी। यह भी बात फैली कि अनेक कारसेवकों के शव पुलिस ने गायब कर दिया है। दूसरी तरफ मुलायम सिंह सरकार लगातार खंडन कर रही थी कि किसी भी कारसेवक के शव को गायब नहीं किया गया है। लेकिन जयपुर के रामअवतार सिंहल ऐसे थे जिनको उनके साथी खोज नहीं पाए और उनका शव नहीं मिला।
कारसेवकों की हत्याओं के साजिशकर्ता फैजाबाद के मुख्य न्यायिक मजिस्टे्रट (सीजेएम) के आदेश से विजयनारायण सिंह सेंगर का शपथ पत्र एफआईआर दर्ज हुआ। जिसमें लिखा गया कि 30 अक्टूबर की पराजय का बदला लेने का काम गुप्तचर विभाग के प्रमुख रामआसरे को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सौंपा था।
रामआसरे ने उस्मान सूबेदार, वशीर खां, यूनूस, ताज मोहम्मद, हाशिम खां, रसीद, कमांडेंट सम्पत, जेएस भुल्लर, जोगिन्दर सिंह, एमएस संधु, एसआर यादव, फैजाबाद के मंडल आयुक्त मधुकर गुप्त, उपमहानिरीक्षक गिरीधारी लाल शर्मा, पुलिस अधीक्षक सुभाष जोशी के साथ सांठ-गांठ करके व्यूह रचना किया था।
दो नवंबर की सुबह मणिराम दास छावनी से कारसेवक दो दलों में तालियां बजाते, रामधुन गाते निकला। जब कारसेवक दिगंबर अखाड़े की सामने वाली गली में पहुंचे तो आंसू गैस का गोला आया। धूंए से आंखे जलने लगी, कारसेवक तितर बितर होने लगे। एक अधिकारी ने आदेश दिया, इन्हें रोको, पीछे मत हटने दो। सीआरपी के जवानों ने कारसेवकों को घेर लिया और निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं।’
IMAGE CREDIT: कारसेवकों की हत्या खोज-खोज कर होने लगी।300 राउंड चली गोलियां उस दिन 300 राउंड गोलियां बरसाई गई। हत्याकांड के समय कमांडेंट सम्पत ने फैजाबाद के जिलाधिकारी रामशरण श्रीवास्तव को धक्का दे दिया और कहा तुम कौन होते हो, हमे रोकने वाले? हम गोली चला रहे हैं, गोली चलाएंगे। तुम्हे गोली चलाने के आदेश पर हस्ताक्षर करना ही पड़ेगा। कारसेवकों की हत्या खोज-खोज कर होने लगी। जिलाधिकारी रामशरण श्रीवास्तव थककर एक दुकान के चबूतरे पर बैठ गए।
जब कुछ पत्रकारों ने जिलाधिकारी रामशरण श्रीवास्तव से हत्याकांड के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘मुझे नहीं मालूम गोली चलाने का आदेश किसने दिया। मेरी कोई सुनता ही नहीं। लखनऊ से आदेश पाकर केवल दस अफसरों का गिरोह यह गोलीबारी कर रहा है। लखनऊ और दिल्ली गोली की भाषा में बात करने पर उतारु है।’ इसके बाद सुरक्षा बलों ने सबूत मिटाने के लिए लाशों को बोरी और बालू में भरकर सरयू में फेंकने का अभियान चलाया।
IMAGE CREDIT: मुझे नहीं मालूम गोली चलाने का आदेश किसने दिया।अफसरों की पत्नियां निकल आई सडक़ों पर हत्याकांड के विरोध में फैजाबाद की जनता तो थी ही, अब जिला प्रशासन और सेना के अधिकारियों की पत्नियां विरोध में सडक़ पर निकल आईं। हाथों में उन्होंने तख्तियां ले रखी थी जिस पर लिखा जनरल डॉयर मत बनो। हिंदूओं के खून से मत खेलो, हमारे बच्चों की हत्या बंद करो।
इधर जोश में उबाल खाते कारसेवक जान देने को उतारु थे। जन्मभूमि की तरफ बढऩा चाहिए, भले ही प्राणों की आहूति देनी पड़े। विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवकों को शांत कराया। स्वामी वामदेव कारसेवकों से शांत होने का आग्रह कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ‘कारसेवकों की जान सस्ती नहीं है। सरकार राक्षसी प्रवृत्ति पर उतारु है। हमें भारत माता का एक-एक लाडला अपने प्राणों से अधिक प्यारा है…मेरे जैसा बूढ़ा व्यक्ति अपने सामने एक भी जवान को अकाल मौत मरते नहीं देख सकता।’
कारसेवकों के नरसंहार के बाद विश्व हिंदू परिषद ने राष्ट्रहित में फैसला लिया कि आंदोलन को यहीं रोक देना चाहिए। अब इसे और व्यापक बनाने के लिए श्रीराम महायज्ञ करने का फैसला किया गया। इस बीच उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह ने कारसेवकों से अपील किया कि अब वह अपने-अपने घरों को लौट जाएं।
उत्तर प्रदेश सरकार से भी अपील किया गया कि कारसेवकों को जन्मभूमि का दर्शन करने दें, जिसके बाद वह वापस लौट जाएंगे। यही हुआ, जो कारसेवक जीवित बच गए वे सात नवंबर तक अपने-अपने घरों को वापस लौट गए।
यह तो रहा अयोध्या का हाल। अब कल के अंक में हम बताएंगे कि अयोध्या के बाहर विभिन्न जिलों में किस प्रकार सरकारी दमन, उत्पीडऩ का चक्र चलता रहा। न्यायालय की अवमानना से लेकर महिलाओं पर हुए अत्याचार की कथा कल के अंक में जारी रखेंगे।
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