श्रीराम जानकी यात्रा के बाद विश्व हिंदू परिषद ने पचास लाख युवाओं का बलिदानी जत्था तैयार किया। वहीं महंत परमहंस रामचंद्र दास ने घोषित कर दिया कि अगर जन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खोला जाता तो वह आत्मदाह कर लेंगे।
साधु-संतों का लखनऊ सम्मेलन
19 जनवरी, 1986 को लखनऊ में साधु-संतों ने विराट सम्मेलन किया। इस सम्मेलन में फैसला हुआ कि अगले छह मार्च (शिवरात्रि), 1986 से संघर्ष शुरू किया जाएगा। अब हिंदू समाज में रोष फैल रहा है। इसी बीच फैजाबाद कोर्ट के अधिवक्ता उमेश चंद्र पाण्डेय की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश कृष्ण मोहन पाण्डेय ने ताला खोलने का आदेश दे दिया। (नोट-ताला खोलने के अदालती प्रक्रिया को विस्तार से हम पहले बता चुके हैं।) जिसे के प्रशासनिक अधिकारियों ने भी न्यायालय को भरोसा दिया कि ताला खुलने से कानून -व्यवस्था की स्थिति नहीं बिगड़ेगी।
दूरदर्शन आकाशवाणी पर शुरू हुआ प्रचार ताला खोलने के न्यायालय के आदेश का समाचार मिलते ही हिंदुओं में खुशी की लहर दौड़ गई। तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसका श्रेय लेने के लिए दूरदर्शन और आकाशवाणी से इसका जमकर प्रचार कराया। अयोध्या में उल्लास और हर्ष प्रकट करने के लिए बिजली की झालरें सजाई गईं, दीवाली मनाई गई।
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कई जगहों पर लोगों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाई। दूर-दूर से लोग अयोध्या रामलला का दर्शन करने आने लगे। इसके बाद राममंदिर के निर्माण की बात होने लगी। मंदिर निर्माण के लिए जगद्गुरु रामानंदाचार्य शिवरामाचार्य की अध्यक्षता में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन किया गया।बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन दूसरी तरफ श्रीराम जन्मभूमि का ताला खुलने से मुसलमानों में गुस्सा फैल गया। जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी, सैयद शहाबुद्दीन, सैयद मुहम्मद बनातवाला, सुलेमान सेत और सलाहुद्दीन औबैसी वगैरह नेताओं ने ताला खुलने को इस्लाम पर आक्रमण माना। फौरन बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया और 14 फरवरी 1986 को मुसलमानों ने काला दिवस मनाया।
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इसका परिणाम यह हुआ कि कश्मीर में अनेक मंदिरों को तोड़ डाला गया। इसके पहले 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के बहिष्कार की घोषणा की गई, एक फरवरी को भारत बंद का आहवान किया गया और 30 मार्च को दिल्ली में विशाल रैली का आयोजन हुआ। लेकिन बाबरी नेताओं की तमात कवायदें फ्लाप शो साबित हुई। आखिरकार गणतंत्र दिवस के बहिष्कार की घोषणा वापस लेनी पड़ी। राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के समर्थक कई जगह आमने-सामने आ गए।हरिद्वार का संत सम्मेलन और बाबरी कमेटी का अयोध्या मार्च 4 जुलाई 1988 को हरिद्वार में संत सम्मेलन का आयोजन किया गया। उसमें संतों ने एकमत से निर्णय किया कि रामजन्म भूमि मुक्ति के सवाल पर अडिग रहना है और बाबरी मस्जिद समर्थक सभी मोर्चो का डटकर विरोध किया जाएगा। इसके बाद बाबरी एक्शन कमेटी ने 12 अगस्त को अयोध्या में मिनी मार्च की घोषणा किया और कहा कि 14 अक्टूबर को लांग मार्च किया जाएगा।
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अयोध्या में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल पर जहां पर पूजा-अर्चना हो रही है, वहां पर नमाज अता किया जाएगा। बाबरी एक्शन कमेटी की इस घोषणा को सुनते ही देशभर में आक्रोश फैल गया और बजरंग दल ने जबावी कार्यवाही में घोषित कर दिया कि दिल्ली की जामा मस्जिद समेत देश की सभी मस्जिदों में हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा।
इसके बाद आठ अक्टूबर को बजरंग दल के आहवान पर उत्तर प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थान बंद रहे। 12 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश बंद रहा। 13 अक्टूबर को बाबरी कमेटी ने बिना किसी शर्त के अपनी लांग मार्च की घोषणा वापस ले लिया।