अयोध्या

रथयात्रा से अटल बिहारी नहीं थे सहमत, उन्हें देश में माहौल बिगड़ने का था डर

भगवान राम ने लंका विजय के लिए भगवान शिव की उपासना की थी। लोकतंत्र में हिंदुत्व की विजय के लिए आडवाणी ने भी भगवान सोमनाथ को चुना। जहां से उन्होंने अपनी रथयात्रा आरंभ किया। बताते हैं कि 25 सितंबर 1990 को प्रभास पाटन की धरती पर वैसे ही लोग जुटे थे, जैसे कभी सरदार पटेल को सुनने आए थे।

अयोध्याOct 25, 2023 / 07:35 am

Markandey Pandey

घंटों तक लोग सड़कों पर खड़े होकर आडवाणी की रथयात्रा का इंतजार करते। ज्यों ही रथ आता पूरा वातावरण जय श्रीराम से गूंजने लगता।

Ram Mandir Katha: 25 सितंबर 1990 का दिन, आडवाणी अपनी रामरथ यात्रा लेकर अयोध्या के लिए निकलने वाले थे। उनको अहसास भी नहीं होगा कि इस यात्रा से वह राजनेता से भी ऊपर उठ जाएंगे। हांलाकि अटल बिहारी बाजपेई उनकी इस यात्रा से सहमत नहीं थे। बाजपेई को लगता था कि इससे देश का माहौल बिगड़ सकता है और आडवाणी की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है। लेकिन आडवाणी रथयात्रा लेकर निकले। इस अवसर पर विजया राजे सिंधिया, सिकंदर बख्त ने अपनी शुभकामनाएं दी।
सोमनाथ से चले रथ के सारथी गुजरात के ही एक मुस्लिम युवक सलीम थे। दूसरे चालक प्रकाश थे। करीब 24 दिनों में बिहार के पटना तक की यात्रा किया। देश के माहौल को राम के प्रति अगाध श्रद्धा से भरते हुए चलता। नया जोश, नया अहसास और युवा पीढ़ी उमंग से भर जाती। घंटों तक लोग सड़कों पर खड़े होकर आडवाणी की रथयात्रा का इंतजार करते। ज्यों ही रथ आता पूरा वातावरण जय श्रीराम से गूंजने लगता। अनेक लोग तो रथ के टायर को छूकर प्रणाम करते। रथ गुजर जाने के बाद भी लोग सड़कों को छूकर प्रणाम करते।
IMAGE CREDIT: रामरथ यात्रा

राजनीति से दूर जिंदाबाद के नारों से करते रहे परहेज

आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा को पूरी तरह श्रीराम मंदिर के लिए समर्पित करने के लिए सख्त हिदायत दे रखी थी कि कोई भी नारा राजनैतिक नहीं लगना चाहिए। आडवाणी जिंदाबाद के नारे तो कदापि नहीं लगने चाहिए। भाजपा के नेता जरूर सभाओं में भाषण देते और सरकार पर तंज करते थे लेकिन उनका भी विषय राम मंदिर ही होता था।
देशभर में रथयात्रा को जो अभूतपूर्व जनसमर्थन हासिल हुआ उसके बारे में लोग कहते मिल जाते कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इतना जबर्दस्त जनसमर्थन का ज्वार नहीं देखा है। शांतिपूर्ण तरीके से आडवाणी का रथ आगे बढ़ता रहा। लेकिन हरियाणा के रोहतक के अस्तल बोहर में इस पर पथराव हुआ। जिसमें आडवाणी घायल होने से बाल-बाल बचे।

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मुलायम सिंह यादव ने दी धमकी यूपी में घुसने नहीं देंगे

1990 में गुजरात में जनता दल की सरकार थी जिसके मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल थे। पटेल आडवाणी से मिलने आए। गुजरात सरकार ने रथयात्रा में पूरा सहयोग दिया। राजस्थान में भी जनता दल के नेताओं ने रथयात्रा में सहयोग किया। जबकि उत्तर प्रदेश में जनता दल की सरकार थी। जिसके मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। मुलायम सिंह ने खुलेआम धमकी दी कि आडवाणी की रथयात्रा को उत्तर प्रदेश में घुसने नहीं देंगे।
दूसरी तरफ कांग्रेस शासित राज्यों में रथ को घुसने नहीं देगे। यह चेतावनी राजीव गांधी एकता परिषद की बैठक में कांग्रेस दे चुकी थी। लेकिन जैसे ही रथ महाराष्ट्र के मुंबई पहुंचा लोगों ने पूरे जोश से उसका स्वागत किया। इसी प्रकार कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में भी रथ का जोरदार स्वागत किया गया। आडवाणी अपनी जनसभाओं में कांग्रेस पर तंज करते थे कि – कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव गांधी से अधिक समझदार निकले।

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हम जातिगत आरक्षण के खिलाफ हैं

आंध्रप्रदेश में 3 और 4 अक्टूबर को जनसभा हुई। हैदराबाद में विशाल जनसभा हुई। इस सभा में आडवाणी ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लेकर कहा कि हम जातिगत आरक्षण के खिलाफ हैं। आंध्रप्रदेश में 40 छोटी-बड़ी जनसभाएं हुई और पूरा माहौल राममय हो गया था। विभिन्न स्थानों पर लोग देर रात एक से दो बजे तक सड़क पर खड़ा होकर रथ का इंतजार करते रहते।
वीपी सिंह की ससुराल में रथ का हुआ भव्य स्वागत

तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की ससुराल देवगढ़ में जनसभा हुई। रथ के यहां आने के पहले ही कोई घर, दुकान या मकान ऐसा नहीं था जो केसरियामय न हो गया हो। सड़क को फूलों और केसरिया झंडों से सजा दिया गया था। लाखों की तादात में लोग जयश्रीराम के नारे लगा रहे थे। रथयात्रा राजस्थान और हरियाणा के विभिन्न स्थानों से होते हुए दिल्ली पहुंचने वाली थी। दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुला बुखारी और कुछ नेताओं ने रथ को रोकने की घोषणा कर दी। इसके बाद माहौल और गर्म हो गया और करीब दो लाख लोगों ने दिल्ली बार्डर पर रथ का स्वागत किया।
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22 अक्टूबर 1990

इसी दिन बिहार के गांधी मैदान में विशाल जनसभा हुई। लाखों की तादात में लोग आडवाणी को सुनने आए। बिहार के नेताओं में ताराकांत झा, लालमुनि चौबे, सुशील कुमार मोदी और उत्तर प्रदेश से आए कलराज मिश्र का भाषण चल रहा था। माहौल काफी गर्म था। जोशीले भाषण के बीच नेताओं का तारतम्य कई बार गड़बड़ हुआ। भाजपा नेताओं को अंदेशा हो चुका था कि रथ को रोका जा सकता है। आडवाणी की गिरफ्तारी हो सकती है।

आडवाणी ने इस जनसभा में राममंदिर से अधिक केंद्र सरकार पर हमला बोलने में समय लगाया। वह काफी आक्रोश में थे। अगले दिन रथ बिहार के समस्तीपुर के लिए रवाना हो गया। अगले दिन सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर समस्तीपुर सर्किट हाउस से आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी के साथ समस्तीपुर के आसपास के जिलों में गिरफ्तारी के विरोध में लोगों का आक्रोश फूट पड़ा। लोगों ने खुद ही बिहार बंद का आयोजन कर दिया। जिसके कारण सरकार ने विरोध करने वाले सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
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आडवाणी के गिरफ्तारी की जानकारी प्रमोद महाजन को मिली

23 अक्टूबर की सुबह समस्तीपुर के जिलाधिकारी ने सर्किट हाउस में जाकर आडवाणी से कहा, “माफी चाहता हूं, निवेदन है कि आपको मेरे साथ चलना होगा।” आडवाणी ने संयम बरतते हुए एक घंटे का समय तैयार होने के लिए मांगा। इसके बाद वे अपनी ऐतिहासिक गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत हो गए। यह बात केवल प्रमोद महाजन को पता चली।
उस समय वह दाढ़ी बना रहे थे। भूल से बिहार सरकार के अधिकारियों ने उनके कमरे का दरवाजा खटखटा दिया। जिसके बाद प्रमोद महाजन को जानकारी मिल गई। गिरफ्तारी के बाद आडवाणी को बंगाल और झारखंंड के सीमा पर दुमका जिले के एक सर्किट हाउस ले जाया गया। उनकी गिरफ्तारी की पटकथा बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मिलकर लिखी थी। एक रात पहले ही हुई बातचीत में गिरफ्तारी का आदेश टाईप कर लिया गया था।
स्टोरी जारी रहेगी। कल की स्टोरी में हम आपको बताएंगे लालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा से वीपी सिंह की सरकार धराशाई हो गई। इसके अलावा चर्चा करेंगे कि कारसेवा शब्द का जिक्र पहली बार कब आया।

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