कार का टायर फटना नहीं है ‘एक्ट ऑफ गॉड’
12 साल से ज़्यादा पुराने मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला लिया है। बॉम्बे हाई कोर्ट के जज एस.जी. डिगे ने इस मामले में फैसला देते हुआ कहा है कि कार का टायर फटना ‘एक्ट ऑफ गॉड’ (‘Act of God’) की श्रेणी में नहीं, बल्कि इंसान की असावधानी माना जाएगा। ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानि की ऐसा कोई एक्ट जो मानवीय नियंत्रण से बाहर हो।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कार का टायर फटने को इंसान की असावधानी बताया है। हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कार के तैयार फटने के लिए इंसान को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया, पर इसे एक मानवीय गलती का नतीजा बताया।
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इंश्योरेंस कंपनी को देना होगा मुआवजायह पूरा मामला 12 साल से ज़्यादा पुराना है। 25 अक्टूबर, 2010 को टवर्द्धन नाम का शख्श अपने दो दोस्तों के साथ एक प्रोग्राम में शामिल होने के बाद दोस्त की कार से पुणे से वापस मुंबई लौट रहा था। रास्ते में पटवर्द्धन के दोस्त की कार का पिछला टायर फट गया और तेज़ स्पीड में होने की वजह से कार एक गहरी खाई में गिर गई। इस एक्सीडेंट में पटवर्द्धन की मौत हो गई थी। वह अपने परिवार में कमाने वाला इकलौता व्यक्ति था और उसके परिवार में उसके बुज़ुर्ग माता-पिता, उसकी पत्नी और एक छोटी बेटी थे।
इस मामले में मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल, पुणे ने इंश्योरेंस कंपनी को पटवर्द्धन के परिवार को 9% ब्याज के साथ 1.25 करोड़ रूपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था। इंश्योरेंस कंपनी ने 7 जून, 2016 को इस आदेश को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए मुआवजे की राशि को काफी ज़्यादा बताते हुए इस पूरे मामले को ‘एक्ट ऑफ गॉड’ बताया था।
अब इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इस ‘एक्ट ऑफ गॉड’ मानने से इनकार करते हुए इंश्योरेंस कंपनी को पटवर्द्धन के परिवार को मुआवजा देने का फैसला सुनाया है।