maqbool bhat books ban in pok
इस्लामाबाद। पाकिस्तान शासित कश्मीर में पूर्व कश्मीरी अलगाववादी नेता मकबूल बट की दो किताबों समेत 14 अन्य पुस्तकों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। गृह विभाग ने आदेश जारी कर मकबूल बट की दो किताबों मैं कौन हूं, श्रीनगर जेल से भागने की कहानी के साथ-साथ उनके संबंध में लिखी गई किताब मकबूल बट दि लाइफ एंड स्ट्रगल भी शामिल है। मकबूल बट को 32 साल पहले भारत में फांसी दी गई थी।
जिन दूसरी किताबों को बैन किया गया है वो हैं: जम्मू-कश्मीर बुक ऑफ नॉलेज, वाउंड दि मैमरी, कश्मीरियत (भाग एक), नॉलेज ऑफ जम्मू-कश्मीर (प्रश्न और उत्तर), पुंछ विभाजन का गाइड मैप, जम्मू और कश्मीर राज्य का गाइड मैप और कश्मीर और भारत का विभाजन और कश्मीर की समस्या (कड़वी सच्चाई), जम्मू-कश्मीर की समस्या और इतिहास के आइने में कश्मीर।
प्रसिद्ध लेखक मोहब्बुल हसन की “कश्मीरी राजाओं के शासनकाल में” और बाल के गुप्ता की किताब “मीरपुर पर जब कय़ामत टूट पड़ी” भी इस सूची में शामिल हैं। जिन लेखकों की किताबों पर रोक लगी है उनमें ज़्यादातर कश्मीर की आजादी के समर्थक हैं।इन किताबों में 1947 में उपमहाद्वीप के विभाजन के समय कश्मीर घाटी में क़बाइलियों के दाखिल होने और उनके ग़ैर मुस्लिमों पर अत्याचार की घटनाओं सहित महाराजा कश्मीर के अलग राज्य के गठन को रोकने की कोशिशों के बारे में लिखा गया है। इन किताबों में कश्मीर के अधिकार और पाकिस्तानी संस्थाओं के विरोध की बात भी है।
उधर, भारत प्रशासित कश्मीर से स्थानीय पत्रकार माजिद जहांगीर के अनुसार अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने कहा, “पाकिस्तान का संविधान भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। अगर आप किसी की बात को पसंद नहीं करते हैं तो भी आप उसके बोलने पर पाबंदी नहीं लगाते हैं। यह लोकतंत्र के खिलाफ है और यह प्रतिबंध तुरंत खत्म किया जाना चाहिए।”
एक और अलगाववादी नेता आजम इंकलाबी कहते हैं कि पाकिस्तान हमेशा कश्मीरियों का दोस्त रहा है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। एक युवा रउफ अहमद का कहना है कि किसी भी सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
लेखक प्रोफेसर राजा मुश्ताक खान का कहना है कि जिन किताबों पर प्रतिबंध लगा है उनके लेखक धर्मनिरपेक्ष और पाकिस्तान विरोधी विचारधारा के समर्थक हैं। उनका कहना है कि अगर 1947 में कबाइली लड़ाके घाटी का रुख़ नहीं करते तो इस समय कश्मीर का नक्शा अलग होता।
मुश्ताक ख़ान इन लेखकों की राय से सहमत तो नहीं मगर वह “कश्मीरी राजाओं के शासनकाल में”और “नॉलेज ऑफ जम्मू-कश्मीर” की जानकारी देने वाली किताबों पर पाबंदी को सही करार नहीं देते। उनके अनुसार यह किताबें जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक, भौगोलिक इतिहास के बारे में जानकारी का एकमात्र जरिया हैं जिन्हें छात्र परीक्षाओं और शोध के लिए इस्तेमाल करते हैं।
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में पहले भी कश्मीर की आजादी का समर्थन करने वाले लेखकों की कई किताबों पर प्रतिबंध लगा है।इसमें कर्नल मिर्जा हसन खान की किताब “शमशीर से ज़ंजीर तक” भी शामिल है।