तालिबान ने जिन आतंकियों को रिहा किया है कि उनमें ज्यादातर तहरीक-ए-तालिबान, अलकायदा और आईएसआईएस से संबद्ध है। ये सभी आतंकी अफगानिस्तान की अलग-अलग जेलों में बंद थे। इसमें कुछ आतंकी पिछले हफ्ते काबुल पर कब्जे के बाद ही रिहा कर दिए गए थे। ये आतंकी कंधार, बगराम और काबुल की जेल में बंद थे। मौलवी फकीर मोहम्मद का जेल से बाहर आना भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। उसका बाहर आना पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
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वहीं, जानकारी यह भी सामने आ रही है कि पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और लश्कर-ए-झांगवी भी अफगानिस्तान में मौजूद हैं। वे यहां तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। तालिबान ने इससे पहले गत 15 अगस्त को काबुल में प्रवेश करने के साथ ही पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोडक़र भाग गए। आरोप है कि वे अपने साथ काफी पैसा और कुछ कीमती सामान लेकर यहां से गए हैं।
तालिबान के सत्ता संभालते ही अफगानिस्तान में डर का माहौल है। दुनियाभर में लोगों ने वहां के हालात पर चिंता जताई है। खासकर, महिलाओं और बच्चों को लेकर लोग ज्यादा चिंतित हैं। इससे पहले अफगानिस्तान पर 1996 से 2001 तक तालिबान का शासन था। 11 सितंबर 2001 को अमरीका में वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद अमरीका के नेतृत्व वाले सैन्य बलों ने अफगानिस्तान से उसका शासन खत्म कर दिया था।
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बता दें कि तालिबान ने सिर्फ 22 दिन में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। इससे वहां की तत्कालीन सरकार और सैन्य बलों की क्षमता पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि उन्होंने इतनी आसानी से हार कैसे मान ली। अमरीकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने भी अपने एक संबोधन में कहा कि अफगानिस्तान की लीडरशिप ने बिना लड़े तालिबान के सामने हथियार डाल दिए।