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सिरिसेना को नहीं थी पूर्व सूचनाकोलंबो पेज ने दो घंटे से अधिक लंबी इस बैठक के बारे में बताया है किकिसी भी पुलिस अधिकारी ने राष्ट्रपति को सूचित नहीं किया कि संभावित आतंकवादी हमले के बारे में अग्रिम रिपोर्ट प्राप्त हो गई है। राष्ट्रपति भवन से जारी बयान में कहा गया है कि न तो रक्षा सचिव, न ही पुलिस महानिरीक्षक और न ही किसी अन्य अधिकारी ने राष्ट्रपति को 21 अप्रैल के आतंकवादी हमले के बारे में भारत से प्राप्त चेतावनी पत्र के बारे में उन्हें सूचित किया था। रक्षा सचिव जनरल शांता कोटेगोडा ने स्टेट इंटेलिजेंस सर्विस की प्रमुख सिसीरा मेंडिस के बयान के बाद गुरुवार को संसदीय चयन समिति (पीएससी) के सामने इस बात का स्पष्टीकरण दिया । आपको बता दें कि पीएससी को ईस्टर संडे आतंकवादी हमलों की जांच के लिए नियुक्त किया गया है। संसद परिसर में कल इसकी पहली बैठक थी। बैठक में रक्षा सचिव ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की प्रक्रिया और राष्ट्रीय खुफिया इकाइयों की गतिविधियों की व्याख्या करते हुए कहा कि कुछ खुफिया अधिकारियों की कथित रूप से गिरफ्तारी से पूरी राज्य खुफिया सेवा कमजोर नहीं हुई। कोटेगोडा ने यह भी बताया कि श्रीलंका में चरमपंथी समूहों के अस्तित्व से संबंधित पहली खुफिया जानकारी 2014 में सामने आई थी और अगर उस समय कार्रवाई की गई होती तो 21 अप्रैल का हमला टल सकता था।
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समय रहते नहीं हुई कार्रवाईकोटेगोडा ने कहा कि हालांकि चरमपंथी संगठनों पर ख़ुफ़िया सूचनाएँ जल्दी सामने आईं और संबंधित पक्षों को तुरंत सूचित किया गया, लेकिन उन्हें प्रतिबंधित नहीं किया गया। यदि उन पर प्रतिबंध लगाया गया होता तो कम से कम यह स्थिति न होती जो आज हुई। यह पूछे जाने पर कि क्या वह देश की वर्तमान सुरक्षा स्थिति से संतुष्ट हैं और क्या राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार है कि भविष्य में ऐसी कोई घटना नहीं होगी, रक्षा सचिव ने कहा कि एक तत्काल समाधान के रूप में किसी नए खतरे को 99 प्रतिशत बेअसर कर दिया गया है। आगे उन्होंने कहा कि यह एक समस्या नहीं है जिसे एक या दो महीने के भीतर खत्म किया जा सकता है। उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि वर्तमान इंटेलिजेंस इकाइयों को कमजोर नहीं किया गया है। बता दें कि श्रीलंका की मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि फरवरी 2019 के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक नहीं हुई।
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