मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका की सरकार ने देशभर के ट्रेड यूनियनों के कड़े विरोध के बाद कोलंबो पोर्ट पर बनने वाली ईस्ट कंटेनर टर्मिनल ( ECT ) परियोजना से बाहर करने का यह फैसला किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का संचालन श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी अपने दम पर करेगी। जबकि, बैठक में ये अहम फैसला किया गया कि वेस्ट टर्मिनल को भारत और जापान के साथ मिलकर एक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के रूप में विकसित किया जाएगा।
बता दें कि 2019 में भारत और जापान के साथ मिलकर श्रीलंका सरकार ने इस पोर्ट पर कंटेनर टर्मिनल बनाने के लिए समझौता किया था। भारत के इस प्रोजक्ट को हंबनटोटा पोर्ट ( Hambantota Project ) पर चीन की मौजूदगी को एक काट के रूप में देखा जा रहा था। हालांकि, ईसीटी परियोजना को लेकर अभी औपचारिक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हुआ था।
भारत ने जताया एतराज
श्रीलंका सरकार के इस फैसले को लेकर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। भारत ने कहा कि यह त्रिपक्षीय समझौता है और श्रीलंका को एकतरफा कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो श्रीलंका चीन के दबाव में ऐसा काम कर रहा है, क्योंकि बीजिंग कोलंबों को 50 करोड़ अमरीकी डॉलर का कर्ज दे रहा है।
मालूम हो कि इस परियोजना को लेकर श्रीलंका के श्रमिक लगातार विरोध कर रहे थे और हड़ताल पर थे। इसके बाद प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने खुद दखल देते हुए इस हड़ताल को खत्म करवाया। श्रमिकों की मांग थी कि ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) बनाने के लिए किसी विदेशी देश को मंजूरी न दी जाए।
मालूम हो कि भारत ने नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत श्रीलंका को कोविशील्ड वैक्सीन की 5 लाख डोज फ्री में दी थी। इसको लेकर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने भारत और पीएम मोदी का आभार जताया था।