Sri Lanka Blasts: आठ धमाकों में 290 लोगों की मौत, 24 संदिग्धों की गिरफ्तारी
देश में लगा कर्फ्यू, अबतक 24 गिरफ्तार
बता दें कि रविवार की सुबह श्रीलंका के तीन चर्च और पांच होटलों में एक के बाद एक सीरियल ब्लास्ट से पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई। इस धमाके में 290 लोगों की मौत हो गई जबकि 500 से अधिक लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद से कई तरह की अफवाह सोशल मीडिया पर तैरने लगी, जिसको रोकने के लिए फौरन ही प्रशासन ने सोशल मीडिया पर रोक लगा दी। देश में बिगड़ते हालात को देखते हुए कर्फ्यू लगा दिया है। साथ ही अब देर रात को राष्ट्रपति ने फिर से आपातकाल की घोषणा कर दी है। इस घटना के बाद से 24 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और तेज गति से जांच की जा रही है।
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दुनिया भर में की गई निंदा
बता दें कि इस घटना की पूरी दुनिया में निंदा की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना से फोन पर बात की और अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए यह भरोसा दिया की आतंक की लड़ाई में भारत हमेशा श्रीलंका के साथ है। वहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर संवेदना व्यक्त की है और कहा कि वह लगातार मामले पर निगाह रखे हुए हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनी संवेदना जाहिर करते हुए घटना की निंदा की। पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने कहा ईस्टर से पहले इस तरह के हमले की वे निंदा करते हैं, हमारी संवेदना श्रीलंका के साथ है। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने लिखा ‘श्रीलंका के होटलों व चर्चों में किया गया हमला बहुत ही दुखद है। इस दुख की घडी़ में ब्रिटेन श्रीलंका के साथ है।’ इसके अलावे इजरायल, ईरान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, टर्की, य़ूरोपीयन यूनियन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, स्पेन आदि तमाम देशों ने कड़े शब्दों में इस घटना की निंदा करते हुए श्रीलंका के साथ अपनी सहानुभूति जताई।
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वर्षों तक श्रीलंका में लगा रहा आपातकाल
बता दें कि, श्रीलंका में वर्षों से चले आ रहे गृहयुद्ध का अंत लगभग 2012 में हो गया था, लेकिन इसके बावजूद भी कई समूहों और संगठनों में सरकार के प्रति विद्रोह की भावना सुलगती रही। यही कारण है कि 2011 में आपातकाल के अंत की घोषणा के बाद फिर से बीते वर्ष 2018 के मार्च में श्रीलंका में आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। यह आपातकाल की घोषणा श्रीलंका के कैंड़ी जिले में सिंहल बौद्ध और अल्पसंख्यक मुसलमान समुदाय के बीच हिंसक झड़पों और मस्जिदों पर हमले के बाद किया गया था। सरकार ने 10 दिनों के लिए आपातकाल की घोषणा की थी। इसको लेकर विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंहे की कड़ी निंदा भी की थी। श्रीलंका में 1971 से 2018 तक यदि कुछ संक्षिप्त अंतराल को छोड़ दें तो करीब चार दशकों तक आपातकाल लागू था। 1983 के बाद से आपातकाल का लगातार विद्रोह किया जाता रहा। इसमें सबसे प्रमुख संगठन तमिल समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) था, जिसे तमिल टाइगर्स के नाम से भी जाना जाता है। लिट्टे ने अलग-अलग राज्यों की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ मौर्चा खोल दिया। लिहाजा श्रीलंका में गृहयुद्घ के हालात बन गए और फिर आपातकाल लगाया गया था। इस कारण श्रीलंका में हिंसा का दौर जारी रहा। कई बड़े हमलों को अंजाम दिया गया। बहरहाल अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि इस हमले में किसका हाथ है, लेकिन जिस तरह से श्रीलंका का इतिहास रहा है, उससे यह शंका जाहिर हो रहा है कि श्रीलंका के आंतरिक संघर्ष ही इसके लिए जिम्मेदार है। हालांकि शुरूआती जांच के बाद नेशनल तौहीद जमात का नाम सामने आया है। नेशनल तौहीद जमात एक कट्टरपंथी मुस्लिमों का एक संगठन है।
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