एशिया

पाकिस्तान: कोर्ट का सख्त फैसला, डी चौक पर मुशर्रफ को दी जाए फांसी और तीन दिनों तक लटका रहने दिया जाए शव

पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई है
तीन सदस्यीय बेंच ने 2-1 से मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाई है

Dec 20, 2019 / 09:28 am

Anil Kumar

इस्‍लामाबाद। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ( Pervez Musharraf ) को देशद्रोह के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई है। जिसे लेकर अब सियासत गर्मा गई है। जहां सेना ने इसका पुरजोर विरोध किया है, वहीं इमरान सरकार ने कहा है कि वह इस फैसले को चुनौती देगी।

इस बीच गुरुवार को मुशर्रफ को राजद्रोह के मामले में मौत की सजा सुनाने वाली तीन सदस्‍यीय पीठ ने अपना विस्तृत फैसला जारी कर दिया है। पीठ में शामिल न्‍यायमूर्ति शाहिद करीम ( Justice Shahid Karim ) ने मुशर्रफ के खिलाफ कठोर फैसला सुनाया है।

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उन्‍होंने अपने फैसले में कहा कि मुशर्रफ को डी चौक पर खींचकर खुलेआम फांसी दी जानी चाहिए। इतना ही नहीं इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा है कि उनके मृतक शरीर को तीन दिनों तक फांसी पर ही टंगा रहना चाहिए। मुशर्रफ को सजा सुनाने वाली पीठ की अध्यक्षता पेशावर हाई कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश वकार अहमद सेठ ने की थी।

तीन जजों की बेंच ने 2-1 से सुनाया था फैसला

आपको बता दें कि तीन सदस्यीय बेंच ने मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाई थी। इस पीठ में सिंध हाई कोर्ट के न्‍यायमूर्ति शाहिद करीम और न्‍यायमूर्ति नाज अकबर शामिल थे। तीनों जजों की बेंच ने 2-1 से फैसला दिया था। इसमें न्‍यायमूर्ति अकबर सजा के खिलाफ थे, ज‍बकि न्‍यायधीश सेठ और करीम सजा के पक्ष में थे।

न्‍यायमूर्ति अहमद सेठ ने सजा के पक्ष में 167 पन्‍नों के फैसलों में लिखा है कि सबूतों ने साबित कर दिया कि मुशर्रफ ने अपराध किया है। जबकि न्‍यायमूर्ति करीम ने कहा कि अभियुक्‍त के तौर पर मुशर्रफ का आचरण बेहद निंदनीय रहा है।

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क्योंकि राजद्रोह का मुकदमा शुरू होते ही उन्होंने बाधा उत्‍पन्‍न करने की कोशिश की और मुकदमे को विलंब कराया व सबूतों को मिटाने के भी प्रयास किए। जस्टिस करीम ने कहा कि यदि एक पल के लिए मान भी लें कि वे इस अभियान का हिस्‍सा नहीं थे तो भी वह संविधान की रक्षा करने में विफल रहे।

इस वक्त दुबई में हैं मुशर्रफ

कोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में कहा है कि वो तमाम वर्दी वाले भी इस मामले में बराबर के भागीदार हैं जिन्होंने उस समय मुशर्रफ का साथ दिया था, उन्हें सुरक्षा दी थी।

फैसले में कहा गया है कि उस वक्त की कोर कमांडरों की कमेटी और वो तमाम वर्दीधारी अधिकारी भी दोषी (मुशर्रफ) द्वारा लिए गए फैसलों में बराबर के शरीक हैं जिन्होंने उसे (मुशर्रफ को) उस वक्त हर समय सुरक्षा प्रदान की थी।

अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा है कि हम कानून लागू करने वाली संस्थाओं को निर्देश देते हैं कि वे भगोड़े/दोषी को पकड़ने में अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करें और यह सुनिश्चित करें कि दोषी को कानून के मुताबिक सजा दी जाए।

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अगर उनकी मौत हो जाती है तो उनकी लाश को घसीटकर इस्लामाबाद में डी चौक पर लाया जाए और तीन दिन तक उसे वहीं लटकाया जाए।

बता दें कि मुशर्रफ इस वक्त दुबई में हैं और अस्वस्थ हैं। उन्होंने फैसले को गलत बताते हुए कहा है कि उनके खिलाफ निजी प्रतिशोध की भावना से फैसला किया गया है।

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