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यह खूबसूरत लडक़ी दस साल तक लडक़ा बनकर तालिबानी आतंकियों के बीच घूमती रही, जानिए अब कहां और किस हाल में है

नादिया गुलाम ने तालिबान की आंखों में धूल झोंकते हुए जिंदगी के दस साल लडक़े की तरह गुजारे। वह अफगानिस्तान की नागरिक थी और तालिबान पिछली बार जब सत्ता में आया, तब उन्हें न तो पढऩे की इजाजत थी और न ही नौकरी करने की।
 

Aug 24, 2021 / 09:52 am

Ashutosh Pathak

नई दिल्ली।
करीब 20 साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में वापसी कर ली है। इसके साथ ही यहां महिलाओं पर हुए अत्याचारों की कहानियां जिंदा हो गई हैं। इन्हीं कहानियों में एक नाम सुर्खियों में आ गया है नादिया गुलाम का। दुनियाभर में मशहूर हुई नादिया ने दस साल तक लडक़ा बनकर तालिबान शासन को धोखा दिया था। नादिया महिला होकर भी बिना बुर्का और हिजाब अफगानिस्तान में घूमती रहीं।
नादिया गुलाम ने तालिबान की आंखों में धूल झोंकते हुए जिंदगी के दस साल लडक़े की तरह गुजारे। वह अफगानिस्तान की नागरिक थी और तालिबान पिछली बार जब सत्ता में आया, तब उन्हें न तो पढऩे की इजाजत थी और न ही नौकरी करने की। कम उम्र में ही नादिया को अपना घर संभालने के लिए झूठ बोलना पड़ा। इसमें उसकी जान को हर पल खतरा था।
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नादिया गुलाम की कहानी बेहद खतरनाक है। जब वह 8 साल की थी, तब बमबारी में उनके भाई की मौत हो गई थी। नादिया खुद भी इस हमले में घायल हो गई थीं। नादिया के अनुसार, वह अस्पताल में लोगों को देखकर हैरान और दुखी थीं कि किस तरह युद्ध लोगों की जिंदगी को बरबाद कर देता है। नादिया ने अपने आसपास के हालात को देखकर एक कड़ा फैसला लिया। यह न केवल मुश्किलभरा था बल्कि, इसमें हर कदम पर खतरा भी था।
11 साल की कम उम्र में नादिया ने अपनी असली पहचान खत्म कर ली थी। वह लडक़ी से लडक़ा बन गई। उसने तय कर लिया कि उन्हें अपने हिस्से का संघर्ष करना है। अब वह पीछे नहीं हटेंगी। नादिया गुलाम कम उम्र में ही काफी बड़ा रिस्क उठा रही थींं। वह हमले में मारे गए अपने छोटे भाई की पहचान बनाकर दुनिया से रूबरू हो रही थीं। नादिया ने तालिबानी शासन में भी अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए सब कुछ झेला। कई बार उनका राज खुलने वाला होता था कि वह अपनी अच्छी किस्मत की वजह से बच जाती थीं।
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नादिया को काम पर जाने के लिए लडक़ों वाले कपड़े पहनने पड़ते थे। कई बार तो वह यह भी भूल जाती कि उनकी असली पहचान लडक़ी की है। दस साल तक परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए वह इस भेष में संघर्ष करती रहीं। आखिरकार 15 साल बाद वह एक एनजीओ की मदद से अफगानिस्तान से बाहर निकलने में कामयाब हुईं।
इन दिनों वह स्पेन में अफगानी शरणार्थी के तौर पर जीवन गुजार रही हैं। उन्होंने पत्रकार एग्रेस रोजर के साथ मिलकर अपनी जिंदगी पर आधारित एक किताब भी लिखी है। नादिया का आरोप है कि अमरीका और कई अन्य देश अफगानिस्तान के लोगों को हथियार थमा रही हैं और उनके साथ धोखा कर रहे हैं।

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