एशिया

तालिबान ने 9 अल्पसंख्यकों को मौत के घाट उतारा, एमनेस्टी इंटरनेशनल का दावा बढ़ सकती है संख्या

अफगानिस्तान के हजारा जातीय अल्पसंख्यक (Hazara ethnic minorty) समुदाय के कई सदस्यों को यातना देकर मार डाला।

Aug 20, 2021 / 09:38 pm

Mohit Saxena

नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से दहशत का माहौल कायम है। यहां पर बड़ी संख्या में लोग अपना देश छोड़ने को मजबूर हैं। हालांकि तालिबान बार-बार यह दावा कर रहा है कि लोग बिना डरे यहां पर रहें, उन्हें कोई खतरा नहीं है। इस बीच एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि तालिबान अभी भी पहले की तरह क्रूर है। बीते दिनों उसने अफगानिस्तान के हजारा जातीय अल्पसंख्यक (Hazara ethnic minorty) समुदाय के कई सदस्यों को यातना देकर मार डाला।

वैश्विक मानवाधिकार संगठन के अनुसार, तालिबान की क्रूरता के शिकार लोगों को गला घोंट कर मार दिया गया। उनके शरीर पर गई घाव देखे गए। एमनेस्टी ने कहा कि एक 45 वर्षीय व्यक्ति को उसके घर से तालिबान लड़ाके बालों से खींचकर बाहर लाए, जिसके पैर और हाथ तोड़ दिए। उसके दाहिने पैर में गोली मार दी गई। उसे बुरी तरह यातना देकर मार दिया गया।

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9 लोगों को मार डाला

एमनेस्टी ने शुक्रवार को कहा कि बीते माह अफगानिस्तान के गजनी प्रांत में चश्मदीदों ने बताया कि किस तरह तालिबान ने मुंडारख्त गांव में 9 लोगों को मार डाला। उन्होंने बताया कि 6 लोगों को गोली मार दी गई, वहीं 3 लोगों को प्रताड़ित करते हुए मार दिया गया। एमनेस्टी इंटरनेशनल के प्रमुख एग्नेस कैलामार्ड के अनुसार हत्याओं की क्रूरता “तालिबान के पिछले दिनों की याद दिलाती है और उसका शासन क्या ला सकता है इसका एक भयावह संकेतक है।’

मोबाइल फोन की सेवाओं पर रोक

अधिकार समूह ने चेतावनी दी कि कई और हत्याएं भी हो सकती हैं, लेकिन अभी तक कई मामले की रिपोर्ट नहीं मिली है। ऐसा इसलिए क्योंकि तालिबान ने तस्वीरों को प्रकाशित होने रोकेने के लिए अपने कब्जे वाले इलाके में मोबाइल फोन की सेवाओं पर रोक लगा रखी है।

साथ ही रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters without Borders) ग्रुप ने इस खबर पर चिंता जताई है कि तालिबानी लड़ाकों ने जर्मन प्रसारक डॉयचे वेले के लिए काम कर रहे एक अफगान पत्रकार के परिवार के सदस्य को मौत के घाट उतार दिया।

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ग्रुप के जर्मन सेक्शन में काम करने वाले काटजा ग्लोगर का कहना है कि यह दुख की बात है कि यह हमारे सबसे बुरे डर की पुष्टि करता है। तालिबान की क्रूर कार्रवाई से पता चलता है कि अफगानिस्तान में स्वतंत्र मीडियाकर्मियों के जीवन पर संकट मंडरा रहा है।

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