मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में नष्ट किए गए 100 मंदिरों में से अधिकांश ऐसे थे, जिनमें नियमित पूजा-अर्चना नहीं की जाती थी। 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद कुछ मंदिरों में तो विस्थापितों ने शरण भी ले रखी थी।
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढांचे को नष्ट किए जाने की खबर मिलने के बाद पाकिस्तान के लाहौर में 8 दिसंबर 1992 को गुस्साई भीड़ ने जैन मंदिर ढहा दिया।
पाकिस्तान के जिन मंदिरों में लोग रह रहे थे, उन्होंने उस वक्त को याद करते हुए कहा कि जब भीड़ इन मंदिरों को नष्ट करने पहुंची, तो उनसे रहम की भीख मांगी गई और प्रार्थना की गई कि वो इन्हें छोड़ दें। क्योंकि यह मंदिर ही नहीं उनके घर हैं। इन पर हमला न किया जाए।
रावलपिंडी के कल्याण दास मंदिर के अधिकारी उस दौरान मंदिर बचाने में किसी तरह सफल रहे। भीड़ के हमले के बावजूद उन्होंने मंदिर को बचा लिया और आज यहां पर नेत्रहीन बच्चों के लिए एक सरकारी स्कूल संचालित हो रहा है।
जबकि रावलपिंडी के ही कृष्ण मंदिर का शिखर उस दौरान तोड़ दिया गया। बावजूद इसके यहां पर पूजा-अर्चना का सिलसिला आज भी जारी है। इन सबके बीच झेलम शहर का एक ऐसा मंदिर है, जिसे भीड़ नुकसान नहीं पहुंचा पाई। आसपास रहने वाले लोगों ने दावा किया कि जिसने भी इस मंदिर की ओर बुरी नजर उठाई उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
कभी मंदिर को नुकसान पहुंचाने वाले की मौत हो गई तो कभी वो घायल हो गया। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कुछ लोगों ने इसे नष्ट करने की कोशिश को लेकिन वो इसके ऊपर से गिर गए। इसके बाद कोई इसकी तरफ नहीं आया।
जिन मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया उनमें लाहौर स्थित अनारकली बाजार का बंसीधर मंदिर, शीतला देवी मंदिर भी शामिल है।