Read this also: मालिक न करें फिर आना पड़े…दो पैसा कम कमाएंगे लेकिन लौटेंगे नहीं अशोकनगर शहर में रहने वाले रजत जैन ने बंगलुरु से एमबीए की पढ़ाई पूरी की है। एमबीए करने के बाद उन्होंने किसी की नौकरी करने की बजाय आत्मनिर्भर युवा बनने की सोची। ऐसे में उनको खेती से बेहतर कोई उपाय नहीं सूझी। शहर से करीब आठ किलोमीटर दूर दियाधरी गांव में रजत के परिवार की करीब तीस बीघा खेती की जमीन है। रजत के अनुसार इन खेतों में दस बीघे में गन्ना लगा था, बाकी जमीन में गेहूं, चना आदि बोया गया था।
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एमबीए पास इस युवा ने जब घरवालों को किसानी का निर्णय सुनाया तो पहले तो घरवालों को यह फैसला कुछ सुहाया नहीं लेकिन बाद में सब सराहने लगे। रजत ने खेतों में फसल पकने के बाद करीब आठ बीधा में तरबूज उगाने का निर्णय लिया और दस बीघा में अमेरिकन मक्का लगाया।
रजत बताते हैं कि इस खेती में उन्होंने रसायनिक खाद का उपयोग न करते हुए केवल आर्गेनिक सामानों का उपयोग किया। रजत बताते हैं कि जब फसल हुई तो करीब एक लाख रुपये के तरबूज बेचे और एक लाख के आसपास का ही मक्का उन्होंने बेचा। वह बताते हैं कि तरबूज या मक्का बोने में बीज, खाद, बुवाई-सिंचाई आदि में करीब तीस-तीस हजार रुपये का खर्च आया था। तीन गुना फायदा होने पर परंपरागत खेती करने वाले घर के लोग भी खुश हुए।
एमबीए पास इस युवा ने जब घरवालों को किसानी का निर्णय सुनाया तो पहले तो घरवालों को यह फैसला कुछ सुहाया नहीं लेकिन बाद में सब सराहने लगे। रजत ने खेतों में फसल पकने के बाद करीब आठ बीधा में तरबूज उगाने का निर्णय लिया और दस बीघा में अमेरिकन मक्का लगाया।
रजत बताते हैं कि इस खेती में उन्होंने रसायनिक खाद का उपयोग न करते हुए केवल आर्गेनिक सामानों का उपयोग किया। रजत बताते हैं कि जब फसल हुई तो करीब एक लाख रुपये के तरबूज बेचे और एक लाख के आसपास का ही मक्का उन्होंने बेचा। वह बताते हैं कि तरबूज या मक्का बोने में बीज, खाद, बुवाई-सिंचाई आदि में करीब तीस-तीस हजार रुपये का खर्च आया था। तीन गुना फायदा होने पर परंपरागत खेती करने वाले घर के लोग भी खुश हुए।
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रजत के चाचा सुभाषचंद्र जैन ने बताया कि बंगलुरु से एमबीए कर चुके भतीजा की देखरेख में गेहूं, चना की फसल कटने के बाद तरबूज, अमेरिकन मक्का व ककड़ी, टमाटर मिर्च आदि बोया। इसमें जैविक खाद डालकर निरंतर पर्यवेक्षण में फसल तैयार की है। इसका अब लाभ भी मिल रहा है।
रजत बताते हैं कि वह ड्रिप विधि से सिंचाई करते हैं। इससे पानी की खपत कम होती है और सिंचाई भी बेहतर हो जाती है।
रजत के चाचा सुभाषचंद्र जैन ने बताया कि बंगलुरु से एमबीए कर चुके भतीजा की देखरेख में गेहूं, चना की फसल कटने के बाद तरबूज, अमेरिकन मक्का व ककड़ी, टमाटर मिर्च आदि बोया। इसमें जैविक खाद डालकर निरंतर पर्यवेक्षण में फसल तैयार की है। इसका अब लाभ भी मिल रहा है।
रजत बताते हैं कि वह ड्रिप विधि से सिंचाई करते हैं। इससे पानी की खपत कम होती है और सिंचाई भी बेहतर हो जाती है।