उन्होंने कहा कि श्री तारवाले बालाजी के दरबारवाली अशोकनगर की पुण्य भूमि पर इतिहास बन गया है। हमारी कथाओं के 3-4 लाख श्रद्वालु तो आते हैं लेकिन अशोकनगर में वो रिकॉर्ड भी टूट गया है। कथा में उन्होंने बताया कि भक्त चार प्रकार के होते हैं। आर्थ, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी। कथा में पं. धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री ने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा सहित भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी किया।
उन्होंने कहा कि जिन्दगी में जब दु:ख आए तो समझना कि दुख कम हो रहें हैं और खुशी आवे तो समझना सुख कम हो रहे हैं। जब तक संसार में दु:ख सुख लगा रहेगा और जब संसार छूटेगा तो पता चलेगा कि ये जीवन तो महज एक सपना था।
उन्होंने कहा कि जिन्दगी में जब दु:ख आए तो समझना कि दुख कम हो रहें हैं और खुशी आवे तो समझना सुख कम हो रहे हैं। जब तक संसार में दु:ख सुख लगा रहेगा और जब संसार छूटेगा तो पता चलेगा कि ये जीवन तो महज एक सपना था।
श्रद्धालुओं का अभिवादन करते रहे पं. धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री
पं. धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री खुली जीप में ऊपर बैठकर कथा स्थल तक पहुंचे तो सड़क के दोनों ओर श्रद्धालुओं का हुजूम लग गया। इस दौरान उन्होंने श्रद्धालुओं का अभिवादन किया। श्रद्धालुओं ने रास्तेभर पुष्प वर्षा कर अभिनंदन किया। श्रद्धालु पं. धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री की एक झलक के लिए पलक पांवड़े बिछाकर खड़े रहे। वहीं कथा सुनने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. इससे कथा पांडाल कम पड़ गया और हजारों लोगों ने पांडाल के बाहर खड़े होकर कथा सुनी। कई श्रद्धालु तो मंडी में टीनशेड के पिलरों पर बैठकर कथा सुनते रहे।
पं. धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री खुली जीप में ऊपर बैठकर कथा स्थल तक पहुंचे तो सड़क के दोनों ओर श्रद्धालुओं का हुजूम लग गया। इस दौरान उन्होंने श्रद्धालुओं का अभिवादन किया। श्रद्धालुओं ने रास्तेभर पुष्प वर्षा कर अभिनंदन किया। श्रद्धालु पं. धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री की एक झलक के लिए पलक पांवड़े बिछाकर खड़े रहे। वहीं कथा सुनने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. इससे कथा पांडाल कम पड़ गया और हजारों लोगों ने पांडाल के बाहर खड़े होकर कथा सुनी। कई श्रद्धालु तो मंडी में टीनशेड के पिलरों पर बैठकर कथा सुनते रहे।