मंदिर के पुजारी आचार्य धनेश द्विवेदी ने बताया कि नर्मदेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना को लेकर यह मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां नर्मदेश्वर महादेव को स्थापित किया था। पूर्व में यह परंपरा थी कि शिवरात्रि के पश्चात कुंड की साफ सफाई होती थी या फिर कभी ग्रहण होने पर श्रद्धालु यहां स्नान करने के लिए पहुंचते थे तथा स्नान के पश्चात ग्रहण के इस जल को दूषित मानकर कुंड की साफ सफाई कराई जाती थी। तब इसके दर्शन श्रद्धालुओं को होते थे। वर्ष भर यह शिवलिंग नर्मदा कुंड के जल में डूबा हुआ रहता है इस कारण से इसके दर्शन प्राप्त में ही हो पाते हैं। वर्ष में एक या दो बार ही नर्मदेश्वर महादेव के दर्शन श्रद्धालुओं को हो पाते हैं।
1156 वर्ष पूर्व नर्मदा कुंड का निर्माण
नर्मदा मंदिर के पुजारी पंडित धनेश द्विवेदी ने बताया कि 1156 वर्ष पूर्व भोंसले राजाओं के कार्यकाल में नर्मदा मंदिर के कुंड का निर्माण कराया गया था। पूर्व में यह स्थान समतल मैदान था तथा नर्मदा की जलधारा यही से होकर बहती थी। एक मान्यता यह भी है कि भगवान श्री राम के वंशज राजा धुंधमार आखेट करने के लिए मैकल पर्वत में आए हुए थे और यहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि इस कुंड में एक ही समय पर शेर तथा गाय पानी पी रहे थे, जिससे वह प्रभावित हुए। उन्होंने मन में सोचा कि मां नर्मदा का इतना प्रताप है कि यहां एक हिंसक प्राणी भी अपने मूल स्वभाव को त्याग कर एक साथ पानी पी रहा है जिसको देखते हुए उन्होंने यहां तपस्या प्रारंभ की और मां नर्मदा ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए।
रेवा नायक को कन्या रूप में यहां मिली थी मां नर्मदा
मां नर्मदा उद्गम स्थल से जुड़ी हुई एक और किवदंती है जिसके अनुसार रेवा नायक नाम का एक मां नर्मदा का परम भक्त था जो प्रतिदिन मां नर्मदा की भक्ति में लीन रहता था। वह हर्रा का व्यापारी था इसके साथ ही प्रतिदिन मां नर्मदा की पूजा अर्चना किया करता था। जिससे प्रसन्न होकर नर्मदा कुंड के समीप कन्या रूप में रेवा नायक को मां नर्मदा ने दर्शन दिए थे।