अमरोहा सीट पर भी भाजपा को लगा झटका, बसपा के कुंवर दानिश अली ने भाजपा के कंवर सिंह तंवर को पीछे छोड़ा
अमरोहा. मतगणना शुरू होने के साथ ही पशिचमी उत्तर प्रदेश से भाजपा के लिए बुरी खबर आने लगी है। अमरोहा सीट से गठबंधन की ओर से बसपा के दानिश अली, भाजपा के कंवर सिंह तंवर और कांग्रेस से सचिन चौधरी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यहां गठबंधन के कुंवर दानिश अली शुरुआत से ही बढ़त बनाए हुए हैं। गौरतलब है कि इस बार यूपी में गठबंधन होने से पश्चिमी यूपी में दलित, जाट और मुस्लिम वोटों के एक साथ आने से गठबंधन प्रत्याशियों की स्थिती काफी मजबूत बनी हुई है।
सुबह 10.32 बजे तक
गठबंधन के दानिश अली-88919 भजपा के कंवर सिंह तंवर- 70083 कांग्रेस के सचिन चौधरी-2449
सुबह 10.06 बजे तक
गठबंधन के दानिश अली-59591 भजपा के कंवर सिंह तंवर- 48443 कांग्रेस के सचिन चौधरी-1580
ऐतिहासिक तौर पर यूं तो इस सीट पर कभी किसी एक दल का दबदबा नहीं रहा। इस सीट की जमता ने लगभग सभी दलों के नेताओं को जिताकर संसद तक पहुंचाने का काम किया है। 1957 में यह लोकसभा सीट वजूद में आने के बाद से अब तक यहां सबसे ज्यादा कांग्रेस और भाजपा को तीन-तीन पर जीत का स्वाद चखने को मिला। लेकिन पिछले चुनाव के आंकड़े पर नजर डाले तो गठबंधन के बाद भी भाजपा के वर्तमान सांसद और प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर एक मजबूत दावेदार नजर आते हैं। हालांकि, गठबंधन की वजह से उन्हें इस बार हार का सामना करना पड़ सकता है।
यूं तो यह सीट मुस्लिम बाहुल्य है। लेकिन, यहां जाट समाज भी बड़ी तादाद में हैं। चुनाव परिणाम का रुख बदलने में उनकी भी खास भूमिका रहती है। इस बार अमरोहा लोकसभा सीट से वैसे तो चुनावी मैदान में 15 कैंडिडेट हैं, लेकिन भाजपा के मौजूदा सांसद कंवर सिंह तंवर, बीएसपी के कुंवर दानिश अली और कांग्रेस के युवा चेहरे सचिन चौधरी पर खासा नजर है। गठबंधन होने से जहां दानिश अली कड़ी टक्कर दे रहे हैं। दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अमरोहा सीट से भाजपा के उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर विजयी रहे थे। तब बसपा दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में मोदी लहर के बीच कंवर सिंह तंवर को 48.3 फीसदी वोट मिले थे। इसके अलावा एसपी उम्मीदवार हुमैरा अख्तर को 33.8 फीसदी वोटों से संतोष करना पड़ा था। वहीं, बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदवार फरहत हसन को 14.9 फीसदी मतदाताओं का साथ मिला था। ऐसे में इन आंकड़ों पर नजर डाले तो इस बार सपा और बसपा के वोट जुड़ने से कड़ी टक्कर मिलने के आसार हैं। इसके अलावा कांग्रेस की ओर से सचिन चौधरी को चुनाव मैदान में उतारने से भाजपा के जाट वोट कटने के संकेत भी है। इसके अलावा इस बार वैसी मोदी लहर नहीं है, जेसा कि 2014 में देखने को मिला था। ऐसे में अगर सपा और बसपा के वोट दानिश अली के खाते में जाते हैं तो वे इस बार बाजी मार सकते हैं। लेकिन भाजपा के पुराने आंकड़े बताते हैं की जीत आसान नहीं होगी। अगर हुई भी तो बहुत कम अंतरों से ही होगी।
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