हम बात कर रहे हैं मोगा जिले में कोट-ईसे-खां कस्बे के गांव गलोटी के शहीद जवान जैमल सिंह के परिवार की। शहीद के वृद्ध पिता जसवंत सिंह ने पंजाब सरकार पर शहीद का अपमान करने का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया कि सरकार की पॉलिसी के मुताबिक उन्हें 12 लाख रुपए की सहयोग राशि देने के बजाए सिर्फ 7 लाख रुपए देकर खानापूर्ति कर दी गई। बेटे की शहादत के बाद सरकार के किसी भी नुमाइंदे या प्रशासन की ओर से उनके परिवार की सुद नहीं ली गई। शहीद जैमल सिंह की शहादत को समर्पित कोई कार्यक्रम आज तक आयोजित नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि खालसा एंड समाजसेवी संस्था की ओर से प्रति माह पांच हजार रुपए की पेंशन दी जा रही है। इसके अलावा मोगा की दो समाजसेवी संस्थाएं भी आगे आईं हैं जो कि शहीद जैमल सिंह के माता—पिता को 10-10 हजार रुपए पेंशन दे रही हैं। परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का वादा भी पूरा नहीं हो पाया।
शहीद की पत्नी सुखजीत कौर के अनुसार सरकार की ओर से बच्चों की नि:शुल्क पढाई कराए जाने का वादा भी अभी तक अधूरा है। उन्होंने बताया कि पंचकूला के निजी स्कूल में सरकार ने उनके बेटे का मुफ्त दाखिला तो कराया लेकिन मासिक फीस नहीं भरी गई। इसके बाद स्कूल प्रबंधन ने ही बेटे गुरप्रकाश सिंह को ताउम्र मुफ्त शिक्षा देने का फैसला किया। कौर का कहना है कि सांसद भगवंत मान ने उनके घर आकर वादा किया था कि वह गांव गलोटी में शहीद जैमल सिंह के नाम से एक खेल स्टेडियम और कस्बा कोटइसे खां में यादगारी गेट बनवाएंगे। यह वादें भी धरातल से कहीं दूर है। मोगा के डिप्टी कमिश्नर संदीप हंस का कहना है कि शहीद जैमल सिंह की शहादत के बाद उनकी ओर से फाइल बनाकर पंजाब सरकार को भेज दी गई थी। सरकार की पॉलिसी के मुताबिक 12 लाख के बजाय सात लाख रुपए ही परिवार के लिए भेजे गए। जैमल सिंह का जन्म 26 अप्रैल 1974 को गांव गलोटी में ही हुआ था। जसवंत सिंह के बेटे जैमल सिंह 23 अप्रैल 1993 को सीआरपीएफ में भर्ती हुए। सुखजीत कौर से शादी के करीब 16 साल के बाद उन्हें एक बेटे की सौगात मिली थी।
अन्य शहीदों के परिवार भी झेल रहे नजरअंदाजी का दंश…
इसी तरह पुलवामा हमले में शहीद होने वाले पंजाब के तीन जवानों के परिवार सरकर की नजरअंदाजी का दंश झेल रहे हैं। गुरदासपुर जिले के आर्य नगर नगर निवासी 31 साल की उम्र में शहीद हुए थे। 2017 में सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में भर्ती हुए। शहादत के वक्त नेताओं ने बड़े बड़े दावे किए, लेकिन एक साल हो गया, कोई वायदा पूरा नहीं हुआ। पिता घर में अकेले रह गए थे, इसलिए उनकी देखभाल को छोटे भाई लखवीश ने भी सीआरपीएफ की नौकरी छोड़ दी। तरनतारन निवासी शहीद सुखजिंदर सिंह ने वर्ष 2002 में देश की सेवा लिए सीआरपीएफ ज्वाइन की थी। उनके पिता एक किसान है। उनके आश्रितों को भी कोई नौकरी नहीं दी गई। आनंदपुर साहिब निवासी शहीद कुलविंदर सिंह जिनके पिता दर्शन सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे। परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। आइटीआइ से एसी मैकेनिक की पढ़ाई पूरी करते ही वर्ष 2014 में 21 साल की उम्र में कुलविंदर सीआरपीएफ की 92 वीं बटालियन में भर्ती हो गए। परिवार का कहना है कि एक साल में ही उनके बेटे की शहादत को भुला दिया गया है। बता दें कि पिछले साल जम्मू—कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। शहीदों में पंजाब के रहने वाले चार जवान भी शामिल थे।