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बंगला में पढ़ाए जाते हैं इनके किस्से…
दिवंगत जसवंत सिंह गिल के नाम अकेले 65 लोगों की जान बचाने का रिकॉर्ड है। बहादुरी के लिए भारत सरकार ने सर्वोत्तम जीवन रक्षक पदक (नागरिक बहादुरी) और लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा था, लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में भी उनका नाम दर्ज है। अमृतसर में गिल की बहादुरी के किस्से हर किसी की जुबान पर सुनाई दे सकते है जबकि पश्चिम बंगाल के स्कूलों में गिल की जीवनी पढ़ाई जाती है।
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जब खान में फंसे 65 मजदूर, सबकि अटकी सांसें
वर्ष 1989 में जसवंत सिंह गिल बंगाल के रानीगंज शहर में कोल इंडिया में बतौर इंजीनियर सर्विस कर रहे थे। रानीगंज की 104 फुट गहरी खान में 232 खान मजदूर काम कर रहे थे। रात को खान में पानी का रिसाव शुरू हो गया। 161 मजदूर तो कोयला निकालने वाली ट्राली के सहारे बाहर आ गए लेकिन 71 मजदूर नीचे ही फंसे हुए रह गए। गिल उस समय 25 किलोमीटर दूर गुरू नानक देव जी का जन्मदिन मनाने की तैयारियों में व्यस्त थे। उन्हें सुबह गुरूद्वारा साहिब में ड्युटी करनी थी। सूचना मिलने पर वह तुरंत खान के लिए रवाना हो गए।
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तुरंत निकाला उपाय, खुद उतरे खान में…
मौके का निरीक्षण करने के बाद वह मजदूरों को बाहर निकालने की रणनीति बनाने में जुट गए। उन्होंने एक स्टील की कैप्सूल नुमा ढांचे के जरिए मजदूरों को बाहर निकालने की योजना बनाई। खान के एक तरफ एक 22 इंच व्यास का सुराख बनवाया गया। इस कैप्सूल नुमा ढ़ांचे में एक आदमी को जमीन के नीचे जाना था लेकिन समस्या यह थी कि जमीन के नीचे जाए कौन। ऐसे में गिल स्वंय जमीन के नीचे जाने के लिए तैयार हुए। विभाग के अधिकारियों ने गिल की जगह किसी मजदूर को भेजने की बात कही। जान बचाकर बाहर आए मजदूरों की मनोदशा गिल अच्छी तरह जानते थे इसलिए वह खुद खान के अंदर चले गए। गिल ने एक एक कर छह घंटों में 65 लोगों को खान से बाहर निकाला। जब आखिरी आदमी को लेकर गिल बाहर निकले तो यह कहते हुए रो पड़े कि वह बाकि छह लोगों को नहीं बचा सके। गिल पर जल्द ही अजय देवगन एक फिल्म बनाने जा रहे हैं।