एक बहुत महंगी बहस करने वाली संस्था
विशेषज्ञों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक नागरिकों की रक्षा करने, युद्धविराम का समर्थन करने और संघर्ष के राजनीतिक तनाव (political tensions) कम करने और समाधान को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थियों और अन्य जरूरतमंद लोगों को भोजन, आश्रय और चिकित्सा सहित मानवीय सहायता प्रदान करता है। यह दावा भी किया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र विवादों को युद्ध में बदलने से रोकने के लिए काम करता है। अलबत्ता संयुक्त राष्ट्र सशस्त्र संघर्ष छिड़ने के बाद शांति बहाल करने में मदद करता है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र युद्ध से उबरे समाजों में स्थायी शांति को बढ़ावा देता है। संयुक्त राष्ट्र अक्सर बेकार और मोटे तौर पर एक बहुत महंगी बहस करने वाली संस्था के रूप में मौजूद है। इसके आदेशों को लागू करने के लिए कोई वास्तविक संसाधन नहीं होने के कारण, इसकी गतिविधियों में आम तौर पर अंतहीन विचार-विमर्श शामिल होता है, जिसके परिणामस्वरूप तथ्य के महीनों बाद दिए गए गैर-बाध्यकारी संकल्प होते हैं जिन पर कोई ध्यान नहीं देता है। इज़राइल, जंग और असहाय यूएन
इज़राइल और फिलिस्तीनी क्षेत्रों (गाजा पट्टी और पश्चिमी तट) के बीच लंबे समय से विवाद है, जिसमें भूमि, आत्मनिर्णय और राजनीतिक अधिकारों को लेकर संघर्ष जारी है। इज़राइल और लेबनान के बीच हिज़्बुल्लाह के साथ सैन्य संघर्ष होते रहे हैं, जिसमें 2006 का युद्ध प्रमुख था। इज़राइल और सीरिया के बीच गोलान हाइट्स को लेकर विवाद है, जो 1967 के युद्ध में इज़राइल द्वारा कब्जा किया गया था। इज़राइल ने कभी-कभी इराक़ के साथ भी संघर्ष किया है, विशेषकर जब इराक़ के पास परमाणु कार्यक्रम था। इजराइल का ईरान के साथ तनाव बढ़ता जा रहा है, खासकर जब
ईरान के परमाणु कार्यक्रम और इसे समर्थित समूहों जैसे हिज़बुल्लाह और हमास के माध्यम से इज़राइल के खिलाफ गतिविधियों को लेकर तनाव कम नहीं हुआ है।
इज़राइली सीमाओं पर हमले
इन संघर्षों के अलावा, इज़राइल का कई अन्य देशों के साथ भी राजनीतिक और सैन्य तनाव हो सकता है, लेकिन उपरोक्त देशों के साथ संघर्ष अधिक प्रमुख हैं। इजराइल गाजा पट्टी में सक्रिय इस्लामी आतंकी संगठन हमास, जो इज़राइल के खिलाफ कई युद्ध और हमले कर चुका है। हिजबुल्लाह लेबनान आधारित शिया आतंकी समूह है, जो
इज़राइल के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करता है और इज़राइली सीमाओं पर हमले करता है। इस्लामिक जिहाद भी एक आंतकी संगठन है, जो गाजा में सक्रिय है और इज़राइल के खिलाफ हमले करता है। फतह यद्यपि यह मुख्यधारा का राजनीतिक दल है, इसके कुछ तत्व हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। अल-कायदा का इज़राइल पर सीधा ध्यान नहीं है, लेकिन इसके समर्थक इज़राइल के खिलाफ हमले करने की कोशिश करते हैं।
रूस और यूक्रेन जंग में बेबसी
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध 2014 से चल रहा है। असल में 24 फ़रवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर हमला किया। इस हमले के बाद से, यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे बड़ा संघर्ष बन गया है। इस युद्ध के कारण कई हज़ार लोगों की मौत हुई है और शरणार्थी संकट भी पैदा हुआ है। अप्रेल 2014 में रूस और स्थानीय छद्म बलों ने यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था। यूक्रेन की गरिमा की क्रांति के बाद रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था। रूस ने यूक्रेन पर हमले की घोषणा करते हुए कहा था कि यूक्रेन परमाणु हथियार विकसित कर रहा है और यूक्रेन में नाटो की सेना और सैन्य बुनियादी ढांचा बना रहा है। वहीं 10 जून, 2023 को यूक्रेन ने रूस पर जवाबी हमला किया था।
उत्तर व दक्षिण कोरिया जंग
कोरियाई युद्ध (1950-53) का प्रारंभ 25 जून, 1950 को उत्तरी कोरिया से दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण के साथ हुआ। यह शीत युद्ध काल में लड़ा गया सबसे पहला और सबसे बड़ा संघर्ष था। एक तरफ़ उत्तर कोरिया था जिसका समर्थन कम्युनिस्ट सोवियत संघ तथा साम्यवादी चीन कर रहे थे, दूसरी तरफ़ दक्षिणी कोरिया था जिसकी रक्षा अमेरिका कर रहा था। यूएन कुछ न कर सका।
ईरान-इराक जंग और असहाय यूएन
ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) एक प्रमुख और लंबा संघर्ष था, जो ईरान और इराक के बीच हुआ। युद्ध की शुरुआत 1980 में इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन द्वारा ईरान के खिलाफ आक्रमण से हुई। मुख्य कारण क्षेत्रीय शक्ति संघर्ष, ईरानी इस्लामिक क्रांति का डर, और तेल संपत्तियों पर नियंत्रण था। युद्ध मुख्य रूप से खाई युद्ध की तरह था, जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गोलाबारी की। इसमें रासायनिक हथियारों का भी उपयोग किया गया। इस युद्ध ने दोनों देशों में भारी जनहानि और आर्थिक तबाही की। अनुमानित रूप से, इस संघर्ष में लगभग 1 से 2 मिलियन लोग मारे गए। युद्ध 1988 में एक संघर्ष विराम के साथ समाप्त हुआ, लेकिन किसी भी पक्ष ने पूरी तरह से जीत नहीं हासिल की। युद्ध के बाद दोनों देशों को भारी आर्थिक और सामाजिक नुकसान झेलना पड़ा।
अफ़ग़ानिस्तान युद्ध व नाटो की सेना
अफ़ग़ानिस्तानी चरमपंथी गुट तालिबान, अल कायदा और इनके सहायक संगठन एवं नाटो की सेना के बीच सन 2001 से चला। इस युद्ध का मकसद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को गिराकर वहाँ के इस्लामी चरमपंथियों को ख़त्म करना रहा।
यह कोई बड़ी राजनीतिक शक्ति नहीं
चर्चिल ने कहा, जबड़ा युद्ध से बेहतर है। यदि यह राष्ट्रों को निंदा करने का मौका देकर रक्तपात को रोकता है, तो यह सार्थक है – और हम शांति स्थापना और सहायता में संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों को नजरअंदाज करते हैं। विश्व शासन में यह कोई बड़ी राजनीतिक शक्ति नहीं है। अमेरिकन स्कॉलर कैनेथ ब्लूमक्विस्ट ( Kenneth Bloomquist)का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किया गया था (जैसे कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशंस) ताकि एक ऐसा मंच प्रदान किया जा सके जहां कूटनीतिक संवाद हो सके और समान विनाशकारी युद्धों के प्रारंभ को रोका जा सके। आदर्शवादी सिद्धांत यह था कि अगर हमें अपने समस्याओं पर चर्चा करने का एक मौका मिला, तो हमारे भीतर के अच्छे गुण प्रबल होंगे और संघर्ष को टाला जा सकेगा। वैश्विक समुदाय उन बुरे तत्वों को चिन्हित और शर्मिंदा कर सकेगा जो अनुपालन नहीं करते, और विश्व के राष्ट्र एक साथ मिलकर संघर्ष से बाहर निकल सकेंगे। यह निश्चित रूप से असफल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र सशक्त नहीं और जंग रोक नहीं पाता
बहरहाल संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा में मुख्य संरचनात्मक समस्या यह है कि सभी राष्ट्र और उनके नेता नैतिक रूप से समकक्ष हैं, और इसलिए लोकतांत्रिक मानदंड जैसे मतदान और कूटनीति को वैधता प्राप्त होती है। यह पश्चिमी विचारों के खुले बहस और समझौते को आकर्षित करता है, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि पूरी दुनिया पश्चिमी नहीं है। यह प्रणाली तब टूट जाती है जब आप यह समझते हैं कि विश्व के कई राष्ट्र ऐसे नेताओं द्वारा संचालित होते हैं जो किसी भी अर्थ में अन्य देशों के लिए नैतिक रूप से समकक्ष नहीं हैं। यूएन केवल, नियम, आचरण और अहिंसक की बात कह सकता है, वह सशक्त नहीं है और किसी भी देश को जंग से रोक नहीं पाता है।