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ट्रंप के खिलाफ महाभियोग क्यों?
बता दें, 2016 में अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कथित तौर पर यह बात सामने आई थी कि ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान रूस की मदद ली थी और रूस ने चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया था। हालांकि ट्रंप और रूस की ओर से इन आरोपों को पहले ही खारिज किया जा चुका था। इसके बाद इस पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति बनाई गई। वरिष्ठ अधिवक्ता रॉबर्ट म्यूलर को इस मामले की जांच की कमान सौंपी गई। म्यूलर ने 22 महीनों तक इस आरोप की जांच-पड़ताल की और एक रिपोर्ट तैयार की। बीते कुछ दिन पहले ही इस रिपोर्ट के सारांश को पेश किया गया था। जिसमें ट्रंप और रूस की मिलीभगत की बात को नकारा गया था। रिपोर्ट में बताया गया था कि रूस की कोई सहभागिता नहीं है। हालांकि अब जब इस रिपोर्ट के संशोधित संस्करण को हाउस ज्यूडिशियरी कमेटी को सौंपी गई है, जिसपर अमरीकी सियासत गर्मा गई है। संशोधित संस्करण में ये बताया गया हैं कि भले ही ट्रंप व रूस की मिलीभगत नहीं थी लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप रूस के हथकंडों से फायदा पाकर खुश थे। साथ ही ट्रंप ने लगातार म्यूलर की जांच को बाधित करने की कोशिश की। इसलिए यह जरूरी है कि राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए। हालांकि हाउस की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने साफ कर दिया है कि ट्रंप के खिलाफ महाभियोग नहीं चलाया जाएगा। उन्होंने कहा है कि रिपब्लिकन के समर्थन के बिना महाभियोग नहीं चलाया जा सकता है।
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इससे पहले भी महाभियोग का आया था प्रस्ताव
मालूम हो कि यह पहली बार नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की मांग की है। इससे पहले 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वित्तीय कानूनों का उल्लंघन करने के मामले में ट्रंप के पूर्व वकील माइकल कोहेन को मैनहैटन की अदालत ने दोषी ठहराया था। साथ ही ट्रंप के पूर्व प्रचार प्रभारी पॉल मैनफोर्ट को बैंक और टैक्स की धोखाधड़ी के आठ मामालों में दोषी पाया था। कोहेन ने अदालत में यह स्वीकार किया था कि चुनाव प्रचार के दौरान अपने उम्मीदवार (ट्रंप) के निर्देश पर मुख्य रूप से चुनाव को प्रभावित करने के मकसद से ही ऐसा किया था। इसको लेकर ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की चर्चा तेज हो गई थी। हालांकि उस वक्त भी ट्रंप महाभियोग नहीं लाया जा सका था।
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क्या मौजूदा समय में लाया जा सकता है महाभियोग?
दरअसल, ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाना सैद्धांति तौर पर जितना आसान दिख रहा है, असल में व्यवहारिक तौर पर ऐसा नहीं है। इसका एक सीधा सा कारण है सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) में बहुमत की सरकार का होना। यानी की सदन में रिपब्लिकन पार्टी बहुमत में है। रिपब्लिकन पार्टी के 238 सदस्य हैं जबकि विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी के केवल 193 सांसद हैं। इसके अलावा सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के 52 और डेमोक्रेटिक पार्टी के 46 सदस्य हैं। अब ऐसे में यदि ट्रंप के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है और समर्थन में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में ही बहुमत नहीं मिला तो प्रस्ताव विफल हो जाएगा।
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