डीजे की धुन पर बकायदा बारात आई, दूल्हा-दुल्हन को मंडप में सात फेरे दिलाए गए लेकिन अंत में दोनों को कुएं में फेंक (Unique marriage) दिया गया। दरअसल क्षेत्र में बारिश नहीं होने के कारण गांव वालों द्वारा ऐसा किया गया।
ग्रामीणों का कहना है कि बारिश नहीं होने पर उनके पूर्वजों द्वारा भी इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा था। आज भी यह परंपरा चली आ रही है। ग्रामीणों के बीच ऐसी मान्यता है कि मेंढक-मेंढकी की शादी (Unique marriage) करने से अच्छी बारिश होती है।
यह अनोखी शादी (Unique marriage) छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के धौरपुर से लगे ग्राम सरईडीह में 18 जुलाई को हुई। मॉनसून ने छत्तीसगढ़ में जिस तरह दस्तक दी थी, वैसी बारिश फिर देखने को नहीं मिली। ऐसे में राज्य के कई इलाकों में सूखे की स्थिति बन गई है। सरगुजा जिले के धौरपुर क्षेत्र में भी बारिश नहीं होने से वहां के किसान चिंतित हैं।
ऐसे में ग्राम सरईडीह के लोगों ने बारिश के लिए वषों से चली आ रही मेंढक-मेंढकी की शादी (Unique marriage) की परंपरा का निर्वहन किया। ग्रामीणों का कहना है कि यह शादी इंद्रदेव को खुश करने के लिए की जाती है। उन्हें भरोसा है कि शादी के बाद क्षेत्र में जमकर बारिश होगी और सूखे की स्थिति से उन्हें निजात मिलेगी।
शादी जैसा ही हुआ सबकुछ
मेंढक-मेंढकी की शादी (Frogs marriage) की खास बात यह रही कि पूरी शादी वास्तविक लग रही थी। मेंढक पक्ष के लोग उसे वाहन से मेंढकी के घर लाए। डीजे व ढोल-नगाड़ों की धुन पर सभी ने डांस किया। बकायदा मंडप सजाया गया था और काफी संख्या में महिला-पुरुष, युवक-युवतियों व बच्चों की भीड़ जुटी।
मेंढक-मेंढकी की शादी (Frogs marriage) की खास बात यह रही कि पूरी शादी वास्तविक लग रही थी। मेंढक पक्ष के लोग उसे वाहन से मेंढकी के घर लाए। डीजे व ढोल-नगाड़ों की धुन पर सभी ने डांस किया। बकायदा मंडप सजाया गया था और काफी संख्या में महिला-पुरुष, युवक-युवतियों व बच्चों की भीड़ जुटी।
मेंढक और मेंढकी को अलग-अलग व्यक्ति अपने हाथों में पकड़े रहे तथा मंत्रोच्चारण के बीच दोनों को सात फेरे दिलाए गए। शादी खत्म होने के बाद दोनों को गांव के कुएं में डाल दिया गया।