scriptन पीने को पानी, न सड़क…. ऐसा हैं राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों का जीवन | No water to drink, no road Such is life of the adopted sons President. | Patrika News
अंबिकापुर

न पीने को पानी, न सड़क…. ऐसा हैं राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों का जीवन

Ambikapur news: सरगुजा जिले में उदयपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत भकुरमा से 10 किमी दूर घने जंगलों व पहाड़ों पर बसे 65 पहाड़ी कोरवाओं का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है।

अंबिकापुरMay 24, 2023 / 02:48 pm

Khyati Parihar

कोरवाओं का जीवन

कोरवाओं का जीवन

Chhattisgarh news: संजय तिवारी@पत्रिका। सरगुजा जिले में उदयपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत भकुरमा से 10 किमी दूर घने जंगलों व पहाड़ों पर बसे 65 पहाड़ी कोरवाओं का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है। सड़क, बिजली, शुद्ध पानी, मकान व स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में इनकी जीवन की गाड़ी जैसे-तैसे चल रही है। प्रशासनिक सर्वे की माने तो इस बस्ती तक सड़क बनाने में ही हजारों पेड़ कटेंगे व और लगभग 60-70 करोड़ खर्च होंगे।
ग्राम भकुरमा के बांसढोढ़ी में पहाड़ी कोरवाओं के 15 परिवार में बच्चे, महिला व पुरुष सदस्य मिलकर 65 लोग हैं। ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसका सामना ये सालों से नहीं कर रहे हैं। महीने में एक बार पहाड़ से राशन लेने नीचे उतरते हैं, फिर वापस उसी (cg news) जंगली रास्ते से लौटते हैं। कोई बीमार पड़ जाए तो अस्पताल लाने तक उसकी जान बचेगी की नहीं, इसकी भी कोई गारंटी नहीं। समस्याओं के लिए इन्होंने प्रशासन से गुहार लगाई तो सर्वे हुआ।
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लकड़ी के घर, लकड़ियां जलाकर कटती है रात

यहां बसे पहाड़ी कोरवा परिवार रूपसाय, सहत राम ने बताया कि लकड़ी के टूटे-फूटे घरों में जैसे-तैसे रह रहे हैं। शाम होते ही लकड़ियां इकट्ठा कर एक जगह जला देते हैं, बस पूरी रात इसी के सहारे कट जाती है। न पीने को पानी मिल पा रहा है न ही अन्य कोई सुविधाएं। पहाड़ी कोरवाओं के अधिकांश बच्चे कुपोषित हैं।
पैदल चले 8 किमी, चढ़ने पर 4 पहाड़

प्रशासनिक सर्वे टीम में शामिल आरईएस के एसडीओ शैलेंद्र भारती, तकनीकी सहायक, आवास कॉर्डिनेटर के साथ ही सरपंच व सचिव जब पहाड़ी कोरवाओं तक पहुंचने के लिए सफर शुरू किया तो इनके पसीने छूट गए। टीम लगभग 8 किमी पैदल चलकर घने जंगल के बीच पथरीले रास्ते से होते हुए 4 पहाड़ों से गुजरी। लगभग ढाई से तीन घंटे का समय लगा, तब टीम बस्ती तक पहुंची। टीम ने पहाड़ी कोरवाओं से चर्चा की तथा सर्वे पूरा किया। सर्वे में ये बात आई कि सारी समस्याओं की जड़ पहुंचविहीनता व दुर्गम इलाका है।
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अफसर बोले- संसाधन जुटा पाना संभव नहीं

अगर यहां सड़क बनाई जाती है हजारों पेड़ काटने पड़ेंगे। पहाड़ों को तोड़ना होगा। तभी सड़क का काम शुरू हो सकेगा। इसमें लगभग 60-70 करोड़ रुपए खर्च होंगे, मतलब एक पहाड़ी कोरवा के विकास के नाम पर लगभग एक करोड़। लेकिन अधिकारियों (cg news) की मानें तो सड़क बनाना लगभग असंभव है, क्योंकि किसी भी निर्माण के लिए तमाम संसाधन जुटाने होते हैं, जो वहां उपलब्ध कराना संभव नहीं है।
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समझाइश दी नीचे बस जाओ, नहीं माने

सर्वे टीम के अधिकारी-कर्मचारियों ने पहाड़ी कोरवाओं को पहाड़ से नीचे बसने की समझाइश दी। उन्हें भूमि आवंटन से लेकर आवास सहित अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। लेकिन पहाड़ी कोरवा नीचे बस्ती में रहने से इनकार कर दिया। वहीं जनपद से मिली जानकारी के अनुसार पहाड़ी कोरवाओं हेतु लगभग 23 पीएम आवास स्वीकृत हैं, लेकिन उस स्थल पर निर्माण कराना ही बड़ी चुनौती है।
पहाड़ी कोरवा बस्ती बांसढोढ़ी का सर्वे करा लिया गया है। इसकी रिपोर्ट आ गई है, जल्द इसे कलेक्टर कार्यालय प्रेषित कर दी जाएगी। वहां से मिले निर्देशों के अनुसार पहाड़ी कोरवाओं की मांगों-समस्या के निराकरण हेतु पहल की जाएगी।

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