अंबिकापुर

महामाया मां की मूर्ति के सामने बैठा रहता था बाघ, सैनिक हटाते थे तब मां के दर्शन करते थे राजा

Navratri Special: मां महामाया का शरीर अंबिकापुर (Ambikapur) में और शीश बिलासपुर के रतनपुर मंदिर में स्थित है, पूर्व में चबूतरे पर मां की मूर्ति थी विद्यमान, सन् 1910 में राज परिवार ने कराया था अंबिकापुर में मां महामाया मंदिर (Maa Mahamaya temple) का निर्माण

अंबिकापुरApr 03, 2022 / 06:05 pm

rampravesh vishwakarma

Mahamaya temple Ambikapur

अंबिकापुर. Navratri Special: 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरु हो चुका है। कोरोना के कारण बंद मंदिर के पट भी अब श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। यहां पहले ही दिन हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करने महामाया मंदिर पहुंचे। अंबिकापुर स्थित महामाया मंदिर का इतिहास (History of Mother Mahamaya temple) काफी पुराना है। यहां माता का शरीर विराजमान है जबकि बिलासपुर के रतनपुर स्थित मंदिर में मां का शीश। ऐसी मान्यता है कि इन दोनों जगहों में से एक जगह किया गया माता का दर्शन अधूरा होता है, दोनों जगह दर्शन करने से पूजा पूरी मानी जाती है। सरगुजा राजपरिवार व इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि प्राचीन काल में अंबिकापुर में मां की मूर्ति के सामने बाघ (Tiger) बैठा रहता था। जब राज परिवार के सैनिक उन्हें हटाते थे तब राजा माता के दर्शन व पूजा करते थे।

सरगुजा जिले के अंबिकापुर स्थित प्राचीन पहाड़ पर मां महामाया का मंदिर स्थित है। मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। सरगुजा महाराजा रघुनाथ शरण सिंहदेव ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।

मां महामाया का नाम अंबिका देवी है। इसी आधार पर सरगुजा जिला मुख्यालय का नामकरण अंबिकापुर रखा गया। हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र से शुरु होती है। चैत्र नवरात्र व शारदेय नवरात्र में मां महामाया मंदिर में श्रद्धालुओं की बेहिसाब भीड़ माता के दर्शन को उमड़ती है।
रतनपुर और अंबिकापुर में मां महामाया के दर्शन बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। बाघक्वांर के महीने की शारदीय नवरात्र में छिन्नमस्तिका महामाया के शीश का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं।

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राजपरिवार की कुलदेवी है मां महामाया
सरगुजा राजपरिवार व इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि मां महामाया मंदिर का निर्माण सन् 1910 में कराया था। मां महामाया सरगुजा राजपरिवार की कुलदेवी हैं। मंदिर में टीएस सिंहदेव विशेष पूजा करते हैं और उनके परिवार के लोग ही मां महामाया और समलाया के गर्भ गृह में प्रवेश कर सकते हैं।
मान्यता है कि यह मूर्ति (Mother Mahamaya idol) बहुत पुरानी है। सरगुजा राजपरिवार के जानकारों के अनुसार रियासत काल से राजा इन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते आ रहे हैं।


रतनपुर की महामाया भी इसी मूर्ति का अंश
इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि दोनों ही मंदिरों में देवी को जोड़े में रखना था। ऐसे में सरगुजा के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंह देव की मां और महाराजा रघुनाथ शरण सिंह देव की पत्नी भगवती देवी ने अपने मायके मिर्जापुर से उनकी कुलदेवी विंध्यवासिनी की मूर्ति की स्थापना इन दोनों मंदिरों में कराईं।

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