माता की यह मूर्ति लाल पत्थर की अष्टभुजी महिषासुर मर्दनी स्वरूप की है। इस मंदिर के बाहर स्थित पेड़ पर नारियल बांधने से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। माता के धाम तक पहुंचने 600 से अधिक सीढिय़ां चढऩी पड़ती हैं।
नवरात्र में माता के दर्शन पहुंचने राज्य व देश के कोने-कोने से लोग यहां पहुंचते हैं। सबसे खास बात यह है कि चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है। 600 सीढिय़ों की चढ़ाई चढऩे के बाद माता के दर्शन होते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के मंदिर के बाहर स्थित पेड़ पर नारियल बांधने से मनचाही मुरादें पूरी होती हैं।
ऐसा है इतिहास
माता बागेश्वरी की यह मूर्ति 18 वीं सदी में हड़ौतिया चौहान वंशों के आधिपत्य में आई थी। इस वंशज के पूर्वज हरिहर शाह चौहान के शासन काल में राजा बालंद विन्ध्य प्रदेश के वर्तमान सीधी जिला के जनक (चांद बखार) के बीच स्थित मरवास के रहने वाले क्षत्रिय कुल के थे। मरवास में अभी भी इस कुल के परिवार हैं।
यह मूर्ति उनके द्वारा ही लाई गई थीं। बालंद क्रूर था जो सीधी क्षेत्र में अपने साथियों के साथ लूटपाट करता था और अपना निवास स्थान वर्तमान में ओडग़ी विकासखंड के अंतर्गत तमोर पहाड़ जो लांजित एवं बेदमी तक विस्तृत है। बालंद से त्रस्त होकर तत्कालीन सरगुजा के जमींदारों ने समूह बनाकर तमोर पहाड़ पर चढ़ाई कर दी थी।
बालंद को घेरकर मारा
जानकार बताते हैं कि मंदिर के पुजारी पद के लिए पंडो और चेरवा के बीच वैमनस्यता हो गई। उस काल में चौहान के मुख्य हरिहर शाह ने राज बालंद को चारों तरफ से घेर लिया और झगराखांड में हुई लड़ाई में वह मारा गया।