रथयात्रा के लिए उत्कल समाज द्वारा श्री जगन्नाथ मंदिर में कई दिनों से व्यापक तैयारियां की जा रहीं थीं। मान्यता है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर रहने के लिए गए थे, यहां 9 दिन रहने के बाद वापस घर लौटे थे। इसी मान्यता से वर्षों से रथयात्रा निकालने की परंपरा चल रही है।
शहर के जगन्नाथ मंदिर में सुबह से ही श्रद्घालुओं की भीड़ पहुंचने लगी थी। समाज के विभिन्न वर्ग के लोग पूजा-अर्चना व परंपरानुसार आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने पहुंचे थे। यहां रथ पूजा, नेत्र उत्सव, नवग्रह पूजन, छेरापहरा के बाद पहंडीविजय का अनुष्ठान हुआ।
रथयात्रा तिवारी बिल्डिंग मार्ग से जोड़ा पीपल होते चौपाटी के समीप स्थित जगन्नाथ मंदिर पहुंची। यहां से कुछ देर बाद शुरू हुई रथयात्रा आकाशवाणी चौक, गांधी चौक, घड़ी चौक, संगम चौक, ब्रह्म रोड होते श्रीराम मंदिर पहुंची।
यहां कुछ देर विश्राम के बाद जयस्तंभ चौक, सदर रोड, महामाया चौक, संगम चौक होते देवीगंज रोड दुर्गाबाड़ी पहुंची, जहां भगवान की मौसी गुंडिचा का घर है। यहां 9 दिनों के लिए उन्हें भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विधि-विधान से स्थापित किया गया।
नौ दिन बाद मौसी के घर से लौटेंगे वापस
पूरे नौ दिनों तक दुर्गाबाड़ी में पूजा-अर्चना की जाएगी। इस बीच जगन्नाथ मंदिर का पट बंद रहेगा। 15 जुलाई को महाप्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा व बलभद्र पुन: रथ में सवार होकर जगन्नाथ मंदिर वापस लौटेंगे। बाहुड़ा यात्रा के साथ मंदिर वापसी पर परंपरानुसार विविध धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को लेकर शहर में भक्ति व उल्लास का माहौल बना रहा। शांति-सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस की ड्यूटी लगाई गई थी। शहर के अलावा संभाग के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्घालु रथयात्रा में शामिल होने पहुंचे थे।
उत्कल समाज के लोग परंपरागत तरीके से वाद्य यंत्र लेकर निकले, जो आकर्षण का केंद्र रहा। रथयात्रा का रास्ते भर विभिन्न समाज व संगठन के लोगों ने स्वागत किया। यात्रा में शामिल लोगों के लिए जलपान की भी व्यवस्था की गई थी।
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