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अंबिकापुर

रेडियो कॉलर पहने ‘गौतमी हथिनी’ तबाह कर रही आशियाने, अफसर सिर्फ लोकेशन पाकर ही गदगद

लोकेशन मिलने के बाद भी ग्रामीणों को अलर्ट नहीं कर पा रहे वन अधिकारी, हाथी से सुरक्षा के नाम पर लोगों को दे रहे धोखा

अंबिकापुरJun 26, 2018 / 05:57 pm

rampravesh vishwakarma

Broken house

broken house

अंबिकापुर. अविभाजित सरगुजा में हाथियों से जान-माल की सुरक्षा के नाम पर वन विभाग के अफसर प्रभावित ग्राम के लोगों को सिर्फ धोखे में रखने का काम कर रहे हैं। सरकारी धन फूंक कर अब तक हाथियों को नियंत्रित करने की तमाम योजना व उपाय फेल ही साबित हो रहे हैं। सोलर फेंसिंग, गजराज प्रोजेक्ट के बाद अफसरों ने एक नया शिगुफा छोड़ा था, हाथियों में रेडियो कॉलरिंग का।
साउथ अफ्रीका से तीन लाख की लागत से मंगाए गए रेडियो कॉलर हाथियों को बड़े ताम-झाम के साथ लगाए तो जा रहे हैं, लेकिन इसका फायदा भी ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। अभी मैनपाट के बरिमा में पिछले दो दिन से जिन 11 हाथियों का दल उत्पात मचाते हुए घरों को तहस-नहस कर रहा है, उसमें एक गौतमी नामक हथिनी भी शामिल है जिसे कुछ दिनों पहले ही रेडियो कॉलर लगाया गया था।
रेडियो कॉलर लगाए जाने की मंशा सिर्फ यही थी कि इससे संबंधित हाथी का लोकेशन मिलेगा और उसके रिहायशी क्षेत्र में घुसने से पहले ही लोगों को अलर्ट कर दिया जाएगा, लेकिन लगातार हथिनी बस्ती में घुसकर उत्पात मचा रही है और वन अमला बेकाम नजर आ रहा है। रविवार की रात भी हाथियों के दल ने बरिमा बस्ती में 5 लोगों के घर तोड़ डाले। हाथियों ने अब तक बरिमा में दो दर्जन से अधिक घरों को तोड़ डाला है।
broken houses in Mainpat
गौरतलब है कि मैनपाट के ग्राम बरिमा में जंगल में कई दिनों से भ्रमण कर रहा 11 हाथियों का दल आए दिन उत्पात मचा रहा है। इससे ग्रामीणों में काफी दहशत है, वे जान-माल की रक्षा करने रतजगा करने को मजबूर हैं। 13 जून की रात हाथियों ने ग्राम बरिमा में 13 घरों को तोड़ दिया था। फिर 23 जून की रात भी हाथियों का दल बरिमा बस्ती में घुस गया। यहां हाथियों ने 9 ग्रामीणों के घर को तोड़ दिया। अंदर रखा सारा अनाज भी चट कर गए।
ग्रामीण इससे उबरे नहीं थे कि रविवार की रात फिर हाथियों का दल बस्ती में घुस आया। हाथियों के आने की सूचना मिलते ही पूरा गांव बाहर निकल आया। यहां हाथियों ने परबल, मुन्नी, कांदु, भुनेश्वर व दलवीर का घर तोड़ दिया। वन अमला सुबह गांव में पहुंचा और नुकसान का जायजा लिया।

कुमकी हाथी से नियंत्रण की बात भी कागजी
अविभाजित सरगुजा में हाथी से सुरक्षा के नाम पर लाई गई योजनाओं पर अब तक करोड़ों रुपए वन विभाग द्वारा फूंके जा चुके हैं। सोलर फेंसिंग, गजराज प्रोजेक्ट सहित तमाम योजनाएं न केवल फेल हो गईं हैं बल्कि हाथियों का उत्पात और बढ़ गया है। मौत के आंकड़ों में भी काफी वृद्धि हुई है। आए दिन रिहायशी क्षेत्रों में घुस रहे हाथी बड़े पैमाने पर घरों व फसल को बर्बाद कर रहे हैं।
इन सब के बीच वन विभाग द्वारा तमोर पिंगला अभ्यारण्य में रेस्क्यू सेंटर तैयार किया जा रहा है, जिसमें कर्नाटक से लाए कुमकी हाथियों की मदद से उत्पाती हाथियों को नियंत्रित कर रखा जाएगा। विभाग का ये दावा भी सिर्फ कागजी ही नजर आता है, महासमुंद में बहुत उत्साहजनक परिणाम अभी तक देखने को नहीं मिले हैं, इतना जरूर है कि कुमकी हाथियों पर लाखों रुपए अब तक फूंके जा चुके हैं।

सिर्फ लोकेशन मिलने से खुश हैं अफसर
मैनपाट के बरिमा में कई दिनों से उत्पात मचा रहे हाथियों के दल में वह हथिनी भी है जिसे कुछ दिनों पहले ही अधिकारी व विशेषज्ञों की टीम ने रेडियो कॉलर लगाया था। रेडियो कॉलर की कीमत तीन लाख रुपए है। इसमें जीपीएस लगा हुआ है जिससे हथिनी के हर मूवमेंट की लोकेशन मिल रही है, इसके बावजूद हथिनी लगातार बस्ती में प्रवेश कर उत्पात मचा रही है।
इसका सीधा अर्थ यही है कि अफसर सिर्फ लोकेशन मिलने पर अपनी पीठ थपथपाकर खुश हो रहे हैं। अगर ग्रामीणों का अलर्ट किया ही नहीं जा पा रहा है, हथिनी को लोकेट करने के बावजूद बस्ती की ओर आने से नहीं रोक पा रहे हैं तो ये सीधे शासकीय राशि का दुरूपयोग व ग्रामीणों को धोखे में रखने जैसा है। ऐसे में ये रेडियो कॉलर जन-धन की हानि रोकने में कैसे कारगर साबित होगा। सरगुजा वन वृत्त में अब तक दो हाथियों को रेडियो कॉलर लगाए जा चुके हैं।

बरिमा में अब तक तोड़ चुके 27 घर
हाथियों का दल एक महीने के भीतर बरिमा में 27 घर को तोड़ चुका है। ऐसा नहीं है कि यह इलाका तराई क्षेत्र या फिर दूरस्थ है, फिर भी वन अमला हाथियों को बस्ती की ओर आने या फिर लोगों को अलर्ट करने में नाकाम साबित नजर आ रहा है। बारिश का मौसम शुरू होने को है और हाथियों के उत्पात से ग्रामीणों के आशियाने तबाह हो रहे हैं।
इन परिवारों के सामने काफी विकट स्थिति पैदा हो गई है, वे आजीविका पर ध्यान दें या फिर घर बनवाएं। आए दिन तो हाथी बस्ती में घुसकर तबाही मचा रहे हैं।

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