अंबिकापुर

CG News: अधूरा रह गया चाय की खेती का सपना, मवेशी चर रहे पौधे, जमीन देकर फस गए किसान

CG News: किसानों को वन विभाग ने भरोसा दिलाया गया था कि चाय की बिक्री में से लाभ का एक हिस्सा उन्हें भी दिया जाएगा, लेकिन 5 साल बाद भी उन्हें एक चवन्नी नसीब नहीं हुई है।

अंबिकापुरJan 23, 2025 / 11:16 am

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CG News: छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से विख्यात मैनपाट में पायलट प्रोजेक्ट के तहत अब चाय की खेती नहीं हो रही है। जो बचे-खुचे पौधे हैं, उन्हें मवेशी चर रहे हैं। वर्ष 2019 में ग्राम ललेया के 3 किसानों की 5 एकड़ जमीन का चयन चाय बागान के लिए किया गया था। किसानों को वन विभाग ने भरोसा दिलाया गया था कि चाय की बिक्री में से लाभ का एक हिस्सा उन्हें भी दिया जाएगा, लेकिन 5 साल बाद भी उन्हें एक चवन्नी नसीब नहीं हुई है। ऐसे में किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
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जशपुर जिले में चाय की खेती में अपार सफलता मिल चुकी है। मैनपाट की जलवायु भी जशपुर की ही तरह होने की वजह से इसे भी चाय की खेती के अनुकूल माना गया। वर्ष 2019 में मैनपाट के ग्राम ललेया में वन विभाग ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत 3 किसानों की सहमति से उनकी 5 एकड़ जमीन ली गई। इसके लिए जशपुर से 1 हजार पौधे भी मंगाए गए थे। उक्त जमीन पर पौधे तो लगाए गए, लेकिन चाय की खेती उस अनुरूप नहीं हो पाई, जिसकी उम्मीद लगाई गई थी।

एक रुपया भी नहीं मिला, जमीन भी फंसी

वन विभाग के अफसरों द्वारा किसानों को यह आश्वासन दिया गया था कि चाय की बिक्री के बाद उन्हें भी इसका हिस्सा मिलेगा। लेकिन 5 साल बाद उन्हें कुछ नसीब नहीं हुआ। ऊपर से उनकी जमीन भी फंस गई है। वे अपनी जमीन पर आलू, टाऊ समेत अन्य दूसरी फसल लगाने वन व राजस्व विभाग के चक्कर लगा रहे हैं। बता दें कि बीज बोने के बाद करीब 4 से 12 साल में चाय का पौधा तैयार होता है। जबकि 1 साल में चाय की पत्तियों की तुड़ाई होने लगती है।

मवेशी चर गए बचे-खुचे पौधे

वन विभाग द्वारा किसानों की जिस जमीन पर लाखों रुपए खर्च कर चाय के पौधे लगाए गए थे, वे कुछ दिनों तक तो लहलहाते रहे, लेकिन उदासीनता की वजह से फसल का उत्पादन नहीं हो सका। अब उनकी देख-रेख भी नहीं हो रही है। विडंबना यह है कि बचे-खुचे चाय के पौधों को मवेशी चर रहे हैं और कोई ध्यान देने वाला भी नहीं है।

सीसीएफ सरगुजा वन वृत्त ने कहा

माथेश्वरन व्ही ने कहा मुझे इस प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी नहीं है। मामला 2019 का है, काफी पुराना मामला है। फिर भी मैं डीएफओ व रेंजर को भेजकर इसकी जानकारी लेता हूं।

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