ज्ञापन में बताया गया है कि उपरोक्त गांवों व वार्डों के लोग गर्दनपाठ मुक्तिधाम की खसरा नंबर 77/2, कुल रकबा 4.50 एकड़ भूमि पर 100 वर्षों से अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं। जन आस्था को देखते हुए ग्राम पंचायत द्वारा विकसित करने की पहल पर 1917-18 में यह पता चला कि उक्त भूमि का पट्टा मो. अब्दुल बसीर के नाम पर 1954-55 में बंदोबस्त हुआ था।
उन्होंने बताया है कि इस बात की जांच किया जाना आवश्यक है कि उक्त भूमि किन परिस्थितियों में मो. अब्दुल बसीर के नाम बंदोबस्त किया गया। उक्त व्यक्ति न तो पूर्व में संबंधित ग्राम के निवासी रहे हैं और न ही उनके वारिसों का इन गावों से कोई नाता है।
वे बंदोबस्त के दौरान कहां के निवासी थे। वहीं 13 फरवरी 2020 को एसडीएम की जांच रिपोर्ट में उक्त स्थल पर कृषि कार्य नहीं होने (Encroachment on land) का जिक्र है। रिपोर्ट के अनुसार खसरा नंबर 14, रकबा 4.46 एकड़ भूमि ‘मुर्दा मवेशी चीरने का स्थान’ के नाम पर दर्ज है।
ऐसे में स्पष्ट है कि उक्त भूमि जो पहाड़ पर स्थित है वहां हिंदू रीति के अनुसार अंतिम संस्कार (Encroachment on land) संभव नहीं है। जबकि खसरा नंबर 77/2 की 4.50 एकड़ भूमि के पास जल प्रवाह की उपलब्धता है, ऐसे स्थान पर ही अंतिम संस्कार की परंपरा है।
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