गौरतलब है कि रेलवे द्वारा अभी फिर से अम्बिकापुर से रेणकूट रेल लाइन के लिए सर्वे हेतु टेंडर जारी किया गया है। इसे लेकर क्षेत्र के लोगों में एक बार फिर से अंबिकापुर से रेल लाइन विस्तार की उम्मीद जगी है परन्तु यह कोई पहली बार नहीं है जब रेलवे ने इस लाइन पर सर्वे के लिए टेंडर जारी किया हो।
इससे पहले भी 3 बार इस लाइन के लिए सर्वे कराया जा चुका है। पूर्व में वर्ष 2014 में ही कोरबा-अम्बिकापुर-रेनुकूट रेललाइन के लिए सर्वे का कार्य कराया गया था। तब इस रेल लाइन की लंबाई करीब 350 किलोमीटर नापी गई थी और इससे रेलवे को केवल 3.56 प्रतिशत राशि प्रतिवर्ष आय के रूप में प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया था।
अर्थात इस रेल लाइन का निर्माण करने में जितनी भी राशि लगती उसकी केवल 3.56 प्रतिशत राशि ही रेलवे को प्राप्त होती जिससे इस मार्ग की लागत निकालने में ही रेलवे को करीब 33 वर्ष लग जाते।
ठेका कंपनी ने की चालाकी
इसके कुछ समय बाद ही भटगांव-प्रतापपुर-वाड्रफनगर-रेणुकूट मार्ग का सर्वे करने के लिए टेंडर जारी किया गया। परन्तु ठेका कंपनी ने चालाकी करते हुए सूरजपुर जिले के भटगांव के बजाय बलौदाबाजार जिले में स्थित भटगांव से सर्वे का कार्य बताते हुए इस रेल लाइन को 405 किलोमीटर का बताया और प्रतिवर्ष आय और कम बताया।
ठेका कंपनी ने अपने मुनाफे के लिए स्थानीय लोगों की भावनाओं के साथ ही उनके विकास के मार्ग को किस प्रकार से बाधित किया, यह इससे समझा जा सकता है कि इस मार्ग के सर्वे की जो रिपोर्ट कंपनी ने रेलवे में प्रस्तुत की थी उसमें कोरबा से रेणुकूट तक हुए पूर्व के सर्वे के पूरे कागजातों को कापी पेस्ट कर जोड़ते हुए प्रस्तुत कर दिया तथा सर्वे के नाम पर करोड़ों रपए हजम कर लिए। ठेका कंपनी ने इस रेल लाइन की लागत 5 हजार 592 करोड़ रुपए बताई थी।
ठेका कंपनी ने दिया ये जवाब
आरटीआई में जब इस बात का खुलासा हुआ तो ठेका कंपनी से जब इस सर्वे के संबंध में जानकारी चाही गई तो ठेका कंपनी द्वारा बड़े ही शातिराना तरीके से यह कहा गया कि टेंडर में यह स्पष्ट नहीं था कि किस भटगांव से सर्वे करना है। इससे ही समझा जा सकता है कि ठेका कंपनी ने रेलवे को सर्वे के नाम पर कैसे ठगा।
वहीं कम ही लोगों को यह पता है कि अम्बिकापुर से रेणुकूट तक के लिए पूर्व में भी एक बार सर्वे का काम हो चुका है। इसमें अम्बिकापुर से रेणुकूट रेलमार्ग का रेट ऑफ रिटर्न 7 से 8 प्रतिशत अनुमानित किया गया था तथा इस रेल मार्ग को कोल ब्लाक वाले एमपी के एरिया सिंगरौली से जोडऩे का भी सुझाव दिया गया था।
इससे इस रेलमार्ग पर रेट ऑफ रिटर्न करीब 14.4 प्रतिशत हो जाता और पूरे रेल मार्ग निर्माण पर लगने वाली कुल लागत को रेलवे मात्र सात वर्षों में ही वसूल लेता। परन्तु राजनैतिक कारणों से इस रेल लाइन निर्माण का काम अटका रह गया जबकि इतनी आमदनी वाले रेल मार्गों का रेलवे काफी तेजी से निर्माण करवाती है।
सर्वेक्षण में गड़बड़ी की रेलवे बोर्ड से हुई थी शिकायत
इस पूरे मामले में सरगुजा रेल संघर्ष समिति के सदस्य द्वारा रेलवे बोर्ड से भी शिकायत की गई थी। इसमें उल्लेख किया गया था कि भटगांव-प्रतापपुर-वाड्रफनगर होते हुए रेणुकूट रेल मार्ग सर्वेक्षण में गड़बड़ी हुई है । रेलवे मंत्रालय द्वारा उत्तर प्रदेश के रेणुकूट व छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग को जोडऩे के दृष्टिगत भटगांव-प्रतापपुर-वाड्रफनगर होते हुए रेणुकूट रेल मार्ग का सर्वेक्षण कराना सुनिश्चित किया गया था, जिसके लिए बीते 3 वर्षो के दौरान अनुदान की मांगों में बजट आवंटित किया गया था।
परंतु मध्य छत्तीसगढ़ के रायपुर संभाग के अंतर्गत आने वाले बलौदाबाजार जिले के पास छोटे से गांव व ब्लॉक भटगांव नामक जगह से कोरबा अम्बिकापुर होते हुए रेणुकूट का सर्वेक्षण किया गया जबकि कोरबा से रेणुकूट व्हाया अम्बिकापुर का सर्वेक्षण अलग से कराया जा रहा था।
यह सर्वेक्षण सूरजपुर जिले के भटगांव विधानसभा स्थित भटगांव से होना था। इस त्रुटि व गड़बड़ी से न केवल रेल मंत्रालय द्वारा सर्वेक्षण के लिए दी गई राशि का भारी नुकसान हुआ है बल्कि उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के लाखों की उम्मीदों पर आघात हुआ है। शिकायकर्ता ने रेल मंत्रालय से मामले की जांच कराए जाने की मांग की है।