माता की यह मूर्ति 18 वीं सदी में हड़ौतिया चौहान वंशों के आधिपत्य में आई थी। इस वंशज के पूर्वज हरिहर शाह चौहान के शासनकाल में राज बालंद जो विन्ध्य प्रदेश के वर्तमान सीधी जिला के जनक (चांद बखार) के बीच स्थित मरवास के रहने वाले क्षत्रिय कुल के थे।
मरवास में अभी भी इस कुल के परिवार हैं। यह मूर्ति उनके द्वारा लाई गई थी। बालंद क्रूर था जो सीधी क्षेत्र में अपने 200 साथियों के साथ लूटपाट करता था और अपना निवास स्थान वर्तमान में ओडग़ी विकासखंड के अंतर्गत तमोर पहाड़ जो लांजित एवं बेदमी तक विस्तृत है, यहीं से वह सरगुजा क्षेत्र में भी लूटपाट करता था।
उससे त्रस्त होकर सरगुजा के गोंडवाना जमींदार, रमकोला लुण्ड्रा, जमींदार, पहाड़ गांव जमींदार, पटना जमींदार तथा खडग़वा जमींदारों ने समूह बनाकर तमोर पहाड़ पर चढ़ाई कर दी थी। पहाड़ पर बालंद परास्त होकर मूर्ति सहित अपने साथियों के साथ इस कुदरगढ़ पहाड़ पर जो कोरिया के रामगढ़ पहाड़ से लगे हुए बीहड़ के कुंदरा में स्थापित है, अपना निवास स्थान बनाया और वहीं से सरगुजा में लूट पाट करता था। उसके निवास स्थान को जानने वाले यहां के मूल निवासी पंडो जाति तथा चेरवा जाति के लोग थे।
बालंद को चारों तरफ से घेरकर मारा
पुजारी पद के लिए पंडो और चेरवो के बीच वैमनस्यता हो गई। उस काल में चौहान के मुख्य हरिहर शाह थे जिन्होंने राज बालंद को चारों तरफ से घेर लिया और झगराखार जो वर्तमान में पुराने धाम के मार्ग में है वहीं लड़ाई में बालंद मारा गया।
चैत्र नवरात्र में लगता है विशाल मेला
मां कुदरगढ़ धाम में चैत्र नवरात्र में विशाल मेला लगता है। कुदरगढ़ी ट्रस्ट इसकी देखरेख करती है। चैत्र नवरात्रि पर पूरे ९ दिनों तक यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि कुदरगढ़ी धाम में मंदिर के बाहर लगे पेड़ पर नारियल बांधने से मांगी गई मुराद पूरी होती है।
मां कुदरगढ़ धाम में चैत्र नवरात्र में विशाल मेला लगता है। कुदरगढ़ी ट्रस्ट इसकी देखरेख करती है। चैत्र नवरात्रि पर पूरे ९ दिनों तक यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि कुदरगढ़ी धाम में मंदिर के बाहर लगे पेड़ पर नारियल बांधने से मांगी गई मुराद पूरी होती है।
मंदिर बनाने का कई बार प्रयास
कुदरगढ़ धाम में माता की मूर्ति एक ताखे में रखी हुई है। कई बार श्रद्धालुओं ने यहां मंदिर बनाने का प्रयास किया लेकिन आज तक मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। इसे लेकर तरह-तरह की मान्यता है।