गिने-चुने किसान ही जीराफूल धान की व्यावसायिक खेती कर रहे हैं। वह भी छोटे पैमाने पर। जबकि सुगंधित जीराफूल चावल 80 से 100 रुपए प्रति किलो की दर से बिकता है। इसके बावजूद किसानों ने इससे दूरी बनाना शुरू कर दी है।
हाइब्रिड
धान काफी कम समय में तैयार हो जाता है और इसमें पानी भी कम लगता है। इस धान का प्रति एकड़ 20 से 25 क्विंटल उत्पादन होता है। इसके अलावा हाइब्रिड धान के उत्पादन में जीराफूल धान से कम लागत लगती है। जबकि जीराफूल धान तैयार होने में ज्यादा समय लगता है और पानी की भी ज्यादा आवश्यकता पड़ती है।
धान का रकबा 30 हजार हेक्टेयर घटा
किसानों को धान की खेती के लिए शासन प्रोत्साहित भी कर रहा है। सरगुजा में पिछले साल तक 1 लाख 35 हजार हेक्टेयर में धान की खेती हुई थी। इस वर्ष यह घटकर 1 लाख 5 हजार हेक्टेयर हो गया है। शासन द्वारा धान के बदले तिलहन, दलहन व रागी-कुटकी जैसे अनाज का उत्पादन करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।
अब सिर्फ 200 हेक्टेयर में ही जीराफुल
चार से पांच वर्ष पूर्व सरगुजा जिले में 5 से 6 सौ हेक्टेयर में जीराफूल धान किसान लगाते थे। अब धीरे-धीरे इसका रकबा कम होता जा रहा है। इस वर्ष लगभग 200 हेक्टेयर में ही जीराफूल धान की खेती की गई है। वहीं किसान अब ज्यादा सब्जी की खेती पर ध्यान दे रहे हैं। इसमें कम समय में किसानों को ज्यादा फायदा पहुंचता है। 10 फीसदी सालाना घट रहा रकबा
जीराफूल धान की खेती
सरगुजा में कम हो रही है। इसकी मुख्य वजह अधिक कीमत पर धान खरीदी है। लोग कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं इस लिए अधिक उत्पादन वाले किस्म की धान अपने खेतों में लगाते हैं। सालाना 10-15 फीसदी इसका रकबा कम हो रहा है।
– जी.एस. धुर्वे, सहायक संचालक कृषि विभाग, सरगुजा