दीपावली (CG Festival Blog) का पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भगवान राम के अयोध्या लौटने की याद में मनाया जाता है। भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के बाद लंका पर विजय प्राप्त कर कार्तिक महीने की अमावस्या को पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे।
इसी खुशी में सभी नगरवासियों ने दीपक जलाए थे। इसलिए इस दिन दिवाली (CG Festival Blog) मनाई जाती है। इस दिन लोग अपने घरों को दीयों, रंगोली, और अन्य चीज़ों से सजाते हैं। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठती है। इसलिए इसे रोशनी का त्योहार भी कहा जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की उपासना की जाती है।
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5 दिन की होती है दिवाली, हर दिन का अलग ही महत्व
दीपावली का पर्व पूरे 5 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें हर दिन का अलग ही महत्व होता है। पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी, तीसरे दिन बड़ी दिवाली (CG Festival Blog) में घर-घर लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। जनजातीय ग्रामीण अंचल में दीपावली के 11 दिन बाद देवउठनी एकादशी तिथि को सोहराय पर्व के नाम से दिवाली मनाते हैं। इसे यहां के जनजातीय लोग देवउठनी सोहराय कहते हैं।
CG Festival Blog: गौ माता को देते हैं मां लक्ष्मी का दर्जा
सरगुजा अंचल की संस्कृति, मान्यताएं और तीज-त्योहार बिल्कुल अनूठे हैं। यहां विशेषकर सोहराय के रूप में लक्ष्मी पूजा का पर्व माना जाता है। इस दिन लोग साफ-सफाई करते हैं और गौ माता की लक्ष्मी के रूप में उपासना करते हैं। जनजातीय समाज के लोग कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन सामान्य रूप से दिवाली मनाते हैं। किंतु इसके 11 दिन बाद देवउठनी एकादशी (CG Festival Blog) तिथि को सोहराय पर्व के नाम से बड़े ही धूमधाम से दिवाली मनाते हैं। इस दिन गाय के कोठा से घर तक गाय के खुर (पंजे) के निशान को छापते हुये घर तक निशान बनाते हैं।
इसे लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक मानते हैं। इस दिन उपवास रह कर लाल कंद, कंद मूल, कुम्हड़े का फल इत्यादि चढ़ाकर मां लक्ष्मी की पूजा करने के बाद फलाहार करते हंै।
देवउठनी सोहराय पर्व के दिन खेला जाता है डार
देवउठनी सोहराई पर्व (CG Festival Blog) के दिन जनजाति समुदाय के लोग डार खेलते हैं। इसमें रात भर करमा नृत्य किया जाता है और सुबह नदी में जाकर स्नान करते हैं। सरगुजा अंचल में डार खेलने की एक परंपरा प्रचलित है। यहां त्योहारों में डार खेला जाता है। जैसे करमा डार, तीजा, डार, जीवतिया डार, दसांई डार और देवउठनी सोहराय में सोहराय डार खेला जाता है। यह भी पढ़ें
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देवउठनी एकादशी से उठ जाते हैं देवता
ऐसी मान्यता प्रचलित है कि देवउठनी एकादशी से देवता उठ जाते हैं। इसलिए कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यताएं (CG Festival Blog) हैं कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को 4 माह के लिए सो जाते हैं, फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन चार महीनों में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। इसी दिन से सारे शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। सरगुजा अंचल के गांव में आदिवासी भी इसी दिन को दिवाली के रूप में सोहराई पर्व मनाते हैं।
दिवाली सोहराई के दिन मनाते हैं कोठा तिहार
सरगुजा आंचल में देवउठनी एकादशी दिवाली (CG Festival Blog) के दिन कोठा तिहार भी मनाया जाता है। इसमें ग्रामीण लोग अपने गौ माता का पैर धो कर फूलमाला चढ़ाकर लक्ष्मी के रूप में पूजा करते हैं। जनजातीय समाज के लोग अब धीरे-धीरे कार्तिक अमावस्या मुख्य दिवाली के दिन भी दीये जला कर गौ माता को मां लक्ष्मी के रूप की पूजा करते हैं। लेकिन इनकी मुख्य दिवाली देवउठनी एकादशी को सोहराई पर्व के रूप में मनाते हैं। अजय कुमार चतुर्वेदी, अंबिकापुर
(राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता)
सदस्य, जिला पुरातत्व संघ, सूरजपुर
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