scriptCG Festival Blog: दीवाली तब और अब: रौशन होती दीपावली के साथ मैंने बिखरते देखे हैं परिवार | CG Festival Blog: Diwali then and now | Patrika News
अंबिकापुर

CG Festival Blog: दीवाली तब और अब: रौशन होती दीपावली के साथ मैंने बिखरते देखे हैं परिवार

CG Festival Blog: समय के साथ बदला दीपों के पर्व को मनाने का तरीका, मीठों की वैरायटी बदली लेकिन रिश्तों की मिठास हुई कम

अंबिकापुरOct 20, 2024 / 02:02 pm

rampravesh vishwakarma

CG Festival Blog

Diwali

CG Festival Blog: 1952 में जब मैं जन्मा तब की दीपावली और आज की दीवाली में अंतर साफ महसूस होता है। होश संभालने के बाद से आज तक हर साल दीपावली का रंग और रुप बदलता रहा है। 70 के दशक में जब मैंने दीपावली को करीब से देखा तब इसकी तैयारियां महीनों पहले से शुरु हो जाती थीं। जो आज एक सप्ताह पहले नजर आती है। कच्चे के मकानों में लिपाई-पोताई (CG Festival Blog) का सिलसिला शुरु हो जाया करता था।
लकड़ी के दरवाजों और चौखटों की साल में एक बार पोताई की जाती थी। इसके लिए कलर नहीं मिला करते थे तो जले हुए मोबिल का इस्तेमाल हम किया करते थे। आज दरवाजों की पोताई में इसका चलन देखने को नहीं मिलता है। दीवारों को रंगने के लिए छुई मिट्टी मिलती थी, जो अब शहरों में नजर नहीं आती। ग्रामीण इलाकों में आज भी छुई का इस्तेमाल लोग करते नजर आ जाते हैं।
CG Festival Blog
Houses cleaning
मेरे जमाने की दीपावली इस लिए भी खास हुआ करती थी क्योंकि उस दौर में परिवार के रिश्तों में मिठास नजर आती थी। आज की तेज दौड़ती जिंदगी और त्यौहारों में चमक-दमक के बीच रिश्तों में दूरियां देखकर कई मर्तबा कोफ्त महसूस होता है।
21वीं सदी की शुरुआत से पहले अमूमन हर घर में दीपावली के लिए नए कपड़े खरीदने, जुआ खेलने, कौड़ी खेलने की परंपरा थी। ये आज लुप्तप्राय हो रही है। आज के नए पूंजीवादी दौर में लोग कपड़े खरीदने के लिए दीपोत्सव का इंतजार नहीं करते।
CG Festival Blog
Fireworks

CG Festival Blog: दर्जी सीते थे कपड़े

80 के दशक से पहले सामान्य व्यक्ति के लिए रेडीमेड कपड़े खरीद पाना आसान नहीं होता था। हालांकि यह भी एक कड़वा सच है कि उस दौर में रेडीमेड कपड़ों का चलन भी नहीं था। इसलिए बाजार से हम कपड़े लेकर दर्जी के पास जाया करते थे। उस खुशी, उस उमंग का इजहार शब्दों में कर पाना नाकाफी होगा।
दर्जी जब नाप लेता था तो उत्साह की थरथरी (CG Festival Blog) शरीर में दौड़ जाती थी। उस पल का इंतजार होता था कि कितनी जल्दी दीपावली आए और हम नए कपड़ों को पहन सकें।
यह भी पढ़ें

CG Festival Blog: उत्साह और उमंग का पर्व है दीपावली, दशहरा से देवउठनी तक निभाते हैं कई परंपरा

पटकने वाले होते थे पटाखे

आज आसमान में रंग-बिरंगे पटाखों (CG Festival Blog) को देखकर ऐसा लगता है कि काश हमारे दौर में भी पटाखों की यही गूंज सुनाई पड़ती। उस दौर में पटाखे तो कम होते थे लेकिन खुशियां अपार हुआ करती थीं।
CG Festival Blog
Fireworks in Ambikapur
हमने अपना बचपन और जवानी पटकनी बमों के साथ गुजारे हैं। टिकली बम को पत्थरों और लोहे के बोल्ट्स से फोडऩे की अनुभूति लाजवाब थी। फुलझडिय़ां हमारी खुशियों में चार चांद लगा दिया करते थे।
CG Festival Blog
Tikali Patakha

रिश्तेदारों के यहां घरेलू मिठाइयां बांटने की थी परंपरा

दीपोत्सव (CG Festival Blog) में खील-बताशे से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती थी। रात जागरण कर पटाखे जलाए जाते थे। दशहरे के बाद से परिवार में दीपावली की खुशियां नजर आने लगती थीं। आसपास के जान-पहचान वाले, रिश्तेदार सब एक-दूसरे के घर आना-जाना शुरु कर दिया करते थे। एक-दूसरे की तैयारियों में हाथ बंटाया करते थे।
CG Festival Blog
Batasha
ये आज मुझे कम घरों में ही देखने को मिलता है, जबकि ये हमारी परंपरा रही है। हमें इसके निर्वहन की दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है। उस दौर में हम दीपावली (CG Festival Blog) की अगली सुबह अपने रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों के यहां घर में बने पकवान और देवी लक्ष्मी पर चढ़ाए गए प्रसाद देने जाया करते थे। इस दौरान बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के बाद ही हम अपनी दीपावली पूरी मानते थे।
यह भी पढ़ें

Breaking news: नकाबपोशों ने उपसरपंच को मारी 2 गोली, मेडिकल कॉलेज अस्पताल किया गया रेफर

इन कारणों से बढ़ी दूरियां

  • बाजारवाद
  • पूंजीवाद
  • शहरीकरण
  • दौड़ती-भागती जीवन शैली
  • मोबाइल
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स

राजेंद्र कुमार सिंह राणा
वरिष्ठ अधिवक्ता, गुदरी बाजार, अंबिकापुर

Hindi News / Ambikapur / CG Festival Blog: दीवाली तब और अब: रौशन होती दीपावली के साथ मैंने बिखरते देखे हैं परिवार

ट्रेंडिंग वीडियो