कुंभकार अब अपने घरों में बिजली से चलने वाले चाक के माध्यम से दीए तैयार कर रहे हैं। बिजली से दीये बना रहे कुंभकार गोविंद सिंह ने बताया कि अब उन्हें मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए काली मिट्टी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है। ऐसे में ज्यादातर कुंभकार अपने इस पुश्तेनी कार्य को छोड़ कर ईंट भ_ों पर भराई का कार्य व दैनिक मजदूरी करने लगे है।
आज मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग कम होने से उनका घर चलाना मुश्किल हो रहा है। वही पहले जो कार्य चौक पर लकड़ी को घुमाकर किया जाता था जिसमे समय अधिक लगता था और बर्तन कम मात्रा में तैयार हो पाते थे। ऐसे में कम समय में अधिक बर्तन बनाने के दबाव के चलते वह बिजली से चलने वाले चोक का इस्तेमाल करने लगे है। उनके द्वारा मिट्टी के बर्तनों के निर्माण कार्य में परिवार के सदस्य ही सहयोग करते है। आज वह बिजली के चोक से एक दिन ढाई से तीन हजार दीये बना सकता है। वही लकड़ी से चलाने वाले चाक पर दिनभर में महज एक हजार दीये ही बड़ी मुश्किल से बन पाते थे। ऐसे में समय अनुसार उन्हें भी अपने कार्य व औजारों में बदलाव करना पड़ा है।