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इलेक्ट्रॉनिक दीयों की चकाचौंध में दीपक का जलवा कायम, दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाना माना जाता है शुभ

दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने का अलग ही धार्मिक महत्व माना जाता है।

अलवरOct 24, 2024 / 07:01 pm

Ramkaran Katariya

कठूमर. दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने का अलग ही धार्मिक महत्व माना जाता है। कुंभकार भी लंबे समय से तैयारी शुरू कर देते हैं, लेकिन लगभग 2 दशकों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बढने के कारण मिट्टी के दीए की खरीदारी में भारी कमी आई है। जिसका सीधा असर उन्हें तैयार करने वाले कुंभकार समाज पर पड़ा है। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक दीयों की चकाचौंध में मिट्टी के दीपक का जलवा कायम है।
जहां हर परिवार पहले दीपावली पर दीए खरीदता था, वह अब इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को तवज्जो देने लगा है। जिस कारण कंभकारों का पुश्तैनी धंधा बर्बाद होने के कगार पर है। चीनी आइटम एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ने पौराणिक दीए का महत्व बेहद कम कर दिया है। मगर कई कुंभकार परिवार आज भी इन दीपकों को बनाते हैं और अपनी परंपरा को निभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सरकार नहीं उठाती उत्थान के कदम

कुंभकार समाज के सक्रिय कमल, मुकेश, सूखा आदि ने बताया कि सरकार ने कुंभकारों के उत्थान के लिए कोई भी योजना या सहयोग उपलब्ध नहीं कराया, जिसके चलते यह रोजगार धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार भी हो रहे हैं। सरकार को चाहिए कि कुंभकार समाज की अपनी परेशानियों एवं चुनौतियां को समझते हुए उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए। विभिन्न योजनाओं के तहत कंभकारों की आर्थिक मदद की जाए, ताकि वह अपने इस पुश्तैनी धंधे को बनाए रखे।
यह बोले लोग

लक्ष्मण प्रजापति कठूमर का कहना है कि करीब बीस साल पहले मिट्टी के दीपकों व अन्य बर्तन बनाने के लिए काम आने वाली काली चिकनी मिट्टी यहां स्थानीय स्तर पर ही मिल जाती थी, लेकिन अब मालाखेड़ा आदि दूर स्थानों से लानी पड रही है। जो काफी महंगी पड़ रही है।
मुकेश प्रजापत कठूमर का कहना है कि बदलते समय में मिट्टी के दीयों की जगह धीरे धीरे इलेक्ट्रोनिक आयटम लेने लगे है। हालांकि कई परिवार मिट्टी के दीपकों को काम में लेते हैं। मांगलिक कार्यों में भी मिट्टी के दीपक उपयोग में आते हैं। हमें अपनी इस परंपरा को रखने के लिए सरकार के संरक्षण की आवश्यकता है।

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