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अलवर के पूर्व महाराजा जयसिंह की डोलची मार होली की थी विदेशों तक धूम

होली के प्रति लोगों में उत्साह रियासतकाल से दिखाई पड़ता है। अलवर के पूर्व राजपरिवार में होली खेलने का पूर्व महाराजा जयसिंह को ज्यादा शौक था, उनके कार्यकाल में होली को बहुत पहचान मिली। होली का त्योहार पूरे महीने तक चलता था।

अलवरMar 17, 2022 / 12:30 am

Prem Pathak

अलवर के पूर्व महाराजा जयसिंह की डोलची मार होली की थी विदेशों तक धूम

अलवर. होली के प्रति लोगों में उत्साह रियासतकाल से दिखाई पड़ता है। अलवर के पूर्व राजपरिवार में होली खेलने का पूर्व महाराजा जयसिंह को ज्यादा शौक था, उनके कार्यकाल में होली को बहुत पहचान मिली। होली का त्योहार पूरे महीने तक चलता था। सिटी पैलेस में आज भी वह कुंडा है, जिसमें होली का रंग भरा जाता था, इसमें पूर्व महाराज अपने जागिरदारों के साथ होली खेलते थे।

डोलची की मार से कई दिन बदन में रहता था दर्द


पूर्व महाराजा जयसिंह की डोलची का निशाना इतना सटीक होता था कि जिस पर भी डालते उसके कपड़े फट ही जाते। कई दिनों तक बदन दर्द करता था। इस दौरान खूब हंसी ठिठोली होती थी। शाम को दरबार लगता जिसमें सभी लोग अपने स्तर के अनुसार पूर्व महाराज को नजराना देते थे, इस अवसर पर अच्छे कार्य करने वालों को सम्मानित किया जाता था।

महिलाओं की होली जनाना महल में होती थी


पूर्व राजपरिवार में महिलाओं की होली जनाना महल के अंदर होती थी। जहां पर रानी व उनकी पटरानियां होली खेलती थी। होली के अगले दिन धुलंडी पर पूर्व महाराजा हाथी पर सवार होकर निकलते थे, हौदे पर गुलाल गोटे जो कि रंग भरियों की गलियों में बनाए जाते थे। तब शहर लाल दरवाजा तक बसा हुआ था। महलों से होकर पूर्व राजा की सवारी जब सर्राफा बाजार, बजाजा बाजार में निकलती तो जनता छतों पर से उनपर गुलाल डालती और पूर्व शासक भी उन पर गुलाल गोटे फेंकते थे, गुलाल गोटे का निशाना इतना सटीक होता था कि जिस पर लगता, उसके कपड़े रंग और गुलाल से तरबतर हो जाते।

होली पर एक माह पहले ही स्वांग निकलना शुरू होते थे


पूर्व राजपरिवार से जुड़े नरेन्द्र सिंह राठौड़ बताते हैं कि होली पर एक माह पहले से ही स्वांग निकलने शुुरु हो जाते थे, गांवों में मेले लगते थे, जगह -जगह पर दंगल होता था तब जाकर लगता था कि होली का त्योहार आ गया है। प्राकृतिक रंगों से होली खेली जाती थी जिससे कोई नुकसान नहीं होता था। सभी जाति धर्म के लोग सद्भाव के साथ होली खेलते थे। किसी से कोई बैर भाव नहीं निकाला जाता था। लेकिन आज होली पर दुश्मनी निकालने का मौका देखा जाता है जो कि बहुत गलत है।

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