जब पहली बार सफलता पर मिली प्रशंसा
आराध्या इस तरह की यात्राओं से महिला सशक्तीकरण व पौधारोपण का संदेश देती हैं। यह मात्र आठ साल की थी उस दौरान मां और मामा के साथ हिमाचल के हमतापात पहाड़ी को बहुत ही आसानी से चढ़ लिया था। तब सभी ने उनकी बहुत सराहना की। इससे आराध्या को प्रोत्साहन मिला और उन्होंने पर्वतारोहण में दिलचस्पी दिखाई। गयारह साल की उम्र तक आते-आते हैं यह छह अचे पहाड़ चढ़ चुकी हैं। पर्वतारोहण की बेसिक और एडवांस ट्रेनिंग भी ले चुकी हैं। अगले माह वह ट्रेनिंग लेंगी जिसमें 15 दिन बर्फ में रहना होता है। मार्च में जा सकती हैं अपने मिशन पर
आराध्या कहती हैं कि जिस तरह से हर पर्वतारोही का सपना माउंट एवरेस्ट फतह करने का होता है, वही मेरा सपना भी है। वह अगले वर्ष मार्च में इस मिशन के लिए जा सकती हैं और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए जी-जान से तैयारी कर रही हैं। बताया जा रहा है कि वह हरियाणा की सबसे कम उम्र की पर्वतारोही हैं और अभी आठवीं कक्षा में पढ़ रही हैं।
मां के सपने को कर रहीं पूरा
आराध्या की मां निशा अलवर के शिवाजी पार्क की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि मैं बचपन से साइक्लिंग करती थी, लेकिन शारीरिक परेशानी के चलते साइकिल चलाना बंद कर दिया। अब मेरी बेटी यह सपना पूरा कर रही है।