सात किलोमीटर का ऊबड़-खाबड़ और पथरीले रास्ते पर चलकर श्रद्धालु नीलकंठ महादेव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों से भी भक्तजन यहां आकर पूजा-अर्चना करते कर परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं। सावन मास के सोमवार को श्रद्धालु जलाभिषेक व धार्मिक अनुष्ठान आदि कर भोलेनाथ को रिझाते हैं।
मंदिर का महत्व नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित शिवलिंग पूर्ण रूपेण नीलम पाषाण के बना है। यहां पाण्डवों के समय से ही अखण्ड ज्योत जलती आ रही है। पूर्व में यह नगर पारानगर के नाम से विख्यात था। प्राचीन संस्कृतियों की मूर्ति कलाकृतियों के पाषाणों से निर्मित पारानगर एवं नीलकंठ महादेव मंदिर इसका एक जीवंत उदाहरण है। मंदिर के गुम्बद व शिलाओं पर मूर्ति कलाकृतियां आज भी देखने को मिलती हैं। पारानगर के खण्डहर एवं अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं। इस मंदिर को सन् 1970 के आसपास पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले रखा है। मंदिर की देखरेख के लिए यहां सदैव पुरातत्व विभाग के कर्मचारी एवं पुलिस जाप्ता तैनात रहता है।
भजन सत्संग और भण्डार सावन मास में यहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्तजन दूरदराज से आकर भोलेनाथ का दर्शन लाभ लेते हंै। मंदिर में अनुष्ठान व भजन सत्संग के अलावा भण्डारा आदि भी होता है। नीलकंठ महादेव के दर्शन के लिए नेता और वीआईपी लोगों का भी आना जाना लगा रहता है।