बुजुर्गो के अनुसार महाराज शिवदानसिंह के राज्य रोहण के समय उनके शासन काल सन् 1857-1874 ई. में अम्मूजान अलवर के दीवान बने। दीवान अम्मूजान सात भाई थे और राजगढ़ के किले के पीछे नवाब की हवेली नामक विशाल भवन में रहते थे। इसमें सात चौक है तथा प्रत्येक भाई का अलग-अलग महल व चौक बना हुआ था। जिसे सात चौक की हवेली के नाम से जाना जाता है। यह ऐतिहासिक ईमारत है। इसे छोटा किला कहे तो कोई आश्चर्य नहीं है। इसका सिंहद्वार, सात चौक, सात महल वास्तुकला के अद्भुत नमूने अब जीर्णशीर्ण अवस्था में है।
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यह हवेली चारों तरफ से सुरक्षित बडे किले का छोटा भाई के समान लगती है। यह छोटा किला वजीरें आजम का था। जिसमें टोडे, टांड, चित्रकारी, पट्टियां अद्भुत वास्तुकला के नमूने देखते ही मन को मोह लेते थे। उस समय के तत्कालीन कारीगरों की दक्षता और निर्माण कला के जीते जागते नमूने हैं, लेकिन आज यह सात चौक की हवेली जनशून्य और खण्डहर के रूप में है। ग्रामीणों का कहना है सात चौक की हवेली पूरी तरह से खण्डहर हो चुकी है। कुछ वर्षो पूर्व हवेली का कुछ हिस्सा बारिश में गिर गया था।
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उल्लेखनीय है कि राजस्थान में अनेक सामंतों, बड़े सेठ साहूकारों तथा धनी व्यक्तियों ने अपने निवास के लिये विशाल हवेलियों का निर्माण करवाया। ये हवेलियां कई मंजिला होती थी । जो अपने छज्जों, बरामदों और झरोखों पर बारीक व उम्दा नक्काशी तथा मनमोहक चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं।
प्रदेश भर में ऐेसे दर्जनों हवेलियां हैं जिनकी बनावट बेहद ही आकर्षक और कलात्मक हैं। इनमें शेखावाटी के रामगढ़, मण्डावा, पिलानी, सरदारशहर, रतनगढ़, नवलगढ़, फतेहपुर, मुकुंदगढ़, झुंझुनूं, महनसर, चुरू आदि कस्बों में खड़ी विशाल हवेलियां आज भी अपने स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। शेखावाटी का नाम राजस्थान के सीकर, झुंझुनू तथा चूरू को मिलाकर दिया गया है।