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राजगढ़ की ऐतिहासिक एवं प्राचीन विरासत ताला-चाबी की बावडी है आकर्षण का केन्द्र….पढ़ें यह न्यूज

महन्त की बावडी बनी हुई है लगभग दो हजार वर्ग गज के आयताकार में। बावडी के मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश करते ही पौली की छत पर राजस्थान की प्राचीन चित्रकारी पिछवाई शैली में की गई है, जिसमें राधा-कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया गया है। बावडी के अंदर शिव मन्दिर, गणेशजी एवं हनुमानजी की प्रतिमा है। इसके अलावा गुरुओं की चरण पादुकाएं बनी हुई है।

अलवरApr 10, 2024 / 12:39 am

Ramkaran Katariya

Rajgarh's historical and ancient heritage lock-key stepwell is the center of attraction...read this news

राजगढ की प्राचीन एवं ऐतिहासिक विरासत महन्तजी की बावडी लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।

राजगढ़. कस्बे के बांदीकुई मार्ग स्थित दादूपंथी ठिकाना गंगाबाग राजगढ की प्राचीन एवं ऐतिहासिक विरासत महन्तजी की बावडी लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। लोगों को नहाने एवं प्यास बुझाने के लिए पानी उपलब्ध कराने वाली यह बावडी भूजल स्तर नीचे चले जाने के कारण अब सूख गई है। महन्त की बावडी लगभग दो हजार वर्गगज के आयताकार में बनी हुई है।
बताया जाता है बावडी का निर्माण महन्त मलूक दास ने 18वीं शताब्दी में अकाल राहत में अपने निजी खर्चे से करवाया था, जिससे लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सके। दादूपंथी महन्त को स्टेट में जागीर मिली थी। उस समय ठिकाना गंगाबाग के पास अकूत सम्पति थी। कहा जाता है कि इसके बाद रामदयाल दास ने कारीगरों से कलात्मक बावडी को पक्का बनवाया था।

वास्तुकला की यह अनौखी बावडी

बावडी का निर्माण जमीन से एक मंजिल ऊपर तक इस प्रकार किया गया है कि यह बाहर से एक प्राचीन हवेली दिखाई देती है। बावडी का प्रवेशद्वार पर किवाड लगे हुए है, जिन्हें बंद कर देने पर बावडी में प्रवेश बंद हो जाता है। यह बावडी ताले-चाबी के नाम से भी जानी जाती है। बावडी के मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश करते ही पौली की छत पर राजस्थान की प्राचीन चित्रकारी पिछवाई शैली में की गई है, जिसमें राधा-कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया गया है। बावडी के अंदर शिव मन्दिर, गणेशजी एवं हनुमानजी की प्रतिमा है। इसके अलावा गुरुओं की चरण पादुकाएं बनी हुई है।

बावडी के बाहरी हिस्से के दोनों ओर बनी हुई है छत्तरियां

महन्तजी की बावडी के बाहरी हिस्से के दोनों ओर दो विशाल छत्तरियां बनी हुई है। अलवर जिले में महन्तजी की बावडी स्थापत्य कला का एक अनुठा एवं उत्कृष्ट नमूना है। बावडी के अंदर करीब बीस फीट चौडा पुल बना हुआ है, जो बावडी को दो भागों में विभक्त करता है। बावडी में चार मंजिल तथा उत्तर-दक्षिण में तिबारे बने हुए है, जिनमें पत्थर के खम्भे लगे हुए है। बावडी के दोनों ओर सौन्दर्यकरण के लिए बाग लगाए गए, जिससे ठिकाना गंगाबाग को आय भी हो सके।
ठिकाना गंगाबाग के महन्त प्रकाशदास का कहना है कि बाल मुकन्द दास महाराज ने बावडी के सौन्दर्यकरण के लिए दोनों ओर बाग बनवाए। बावडी के दोनों ओर प्राचीन स्थापत्य कला की दो छत्तरियां बनी हुई है। अलवर रियासत के दादूपंथी महन्तजी को राजगुरु की गद्दी दी गई थी। स्टेट की जागीर होने के कारण ठिकाना गंगाबाग के पास अकूत खजाना था। सन् 1990 में बावडी में लबालब पानी भर गया था, लेकिन भूजल स्तर नीचे जाने के कारण बावडी का पानी सूखता गया। बावडी की खुदाई भी करवाई गई, लेकिन पानी नहीं निकल पाया। आज यह बावडी पेयजल के अभाव में अपनी आभा खोती जा रही है।

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