ऐतिहासिक नीमराणा किले का इतिहास
पृथ्वीराज चौहान वंश का ऐतिहासिक कस्बा नीमराणा अनगिनत संघर्षों साहस और पराक्रम की गाथाओं से जहां परिपूर्ण रहा है । वहीं राजस्थान के इस सिंह द्वार कहलाए जाने वाले कस्बे को चौहान वंश के 31वें शासक राजा हीलादेव के पुत्र राजा राजदेव ने सन 1446 में बसाया था। शुरू में इसका नाम निमोला रखा गया। बताया जाता है कि जिसमें राजा राजदेव ने निमोला मेओ को परास्त कर पृथ्वीराज चौहान वंश की स्थापना कर इसको राजधानी बनाई।उसके आग्रह पर नाम दिया जो बाद में नीमराणा में तब्दील हो गया।
नीमराणा फोर्ट पैलेस की स्थापना भी राजा राजदेव ने 1446 में ही शुरू करवा दी थी जिसका विस्तार उनके पुत्र पूरणमल ने 1465 से 1518 में करवाया। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की मध्य घोड़े की नाल के आकार का बना यह महल उस समय आठ मंजिला था। जिसमें आवास व वास्तुकला,शिल्प तथा कलात्मक जहां देखते ही आकर्षित करती है।आजादी के बाद इस महल को राजा राजेंद्र सिंह ने छोड़कर अपना स्थान विजय बाग में कर लिया था। जो देखरेख के अभाव में खंडहर हो रहा था। राजा राजेंद्र सिंह ने इसी महल को 1986 में निजी लोगों को बेच दिया जिन्होंने इसे नया स्वरूप प्रदान कर न केवल महल की भव्यता और प्राचीनता को बरकरार रखा बल्कि उत्कृष्ट वास्तु कला के कारण भी महल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कराई।
आज यह महल होटल में तब्दील है तथा कई एकड़ भूमि पर चकाचौंध सहित विभिन्न आधुनिक सुविधाओं से वर्ल्ड हेरीटेज सेंटर की सर्वश्रेष्ठ होटल की गिनती में सम्मिलित हो अनेक पुरस्कार प्राप्त कर विश्व के नक्शे पर छाया हुआ है।किला के इतिहास व प्राचीन भव्यता को देखने देसी विदेशी पर्यटकों का मेला लगा रहता है। यह किला राजस्थान की पुरानी और नई वास्तुशैली का मिश्रण है। यह किला पर्यटकों के लिए खुला है। यहां अंतर्राष्ट्रीय लेखक कॉन्फ्रेंस, अर्थशास्त्रियों की कॉन्फ्रेंस,देसी विदेशी पर्यटकों की शादियां, अभिनेताओं की शूटिंग,राजदूत सम्मेलन सहित देशी- विदेशी नेताओं का आना-जाना रहता है।
नौ मंजिला बावड़ी भी कर रही आकर्षित
महल के उत्तर दिशा में सिलारपुर रोड पर करीब 350 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक स्थापत्य कला और जल संरक्षण का महत्व बताने वाली ऐतिहासिक बावड़ी अब राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों में शामिल हो गई है। बावड़ी को भारतीय पुरातत्व ने अधिग्रहण कर राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया। इस नौ मंजिला बावड़ी को देखने हजारों पर्यटक आते हैं। बावड़ी रियासतकालीन जल संरक्षण संरचना का बेजोड़ नमूना होने के साथ राजपूत शैली की अनुपम कलाकृति भी है। इसकी हर मंजिल पर बेशकीमती पत्थर, नक्काशी और कलात्मक झरोखे बने हैं।
हर मंजिल पर कक्ष भी बने हैं। जिनका इस्तेमाल गर्मियों में शीतलता के साथ आराम करने में किया जाता था। बावड़ी का पानी पीने और सिंचाई में उपयोग होता था। बावड़ी का निर्माण विक्रम संवत 1740 में तत्कालीन राजा माहसिंह देव ने करवाया था। दूर से यह बावड़ी समतल नजर आती है, लेकिन हकीकत में यह जमीन से 250 फीट गहरी है। नीचे उतरती दिशा में नौ मंजिल बनी हुई हैं। इनके बीच 150 सीढ़ियां हैं। हर मंजिल एक दूसरे से इस तरह जुड़ी है कि कहीं से भी आ जा सकते हैं। इसके निर्माण में एक लाख 25 हजार चांदी के सिक्के लगे थे। पुरातत्व विभाग का कार्य चल रहा है।