गांव में पायल की सहपाठी छात्राओं ने जो बताया उससे लगा कि असल में पायल इस अवार्ड की हकदार थी। वे बोली कि पायल स्कूल में भी दूसरी छात्राओं को जल्दी शादी नहीं करने और पढ़ाई कर आगे बढऩे को प्रेरित करती रही थी। किसी छात्रा की कम उम्र में शादी किए जाने की सूचना मिलती तो वे उनके परिवार से मिलती। बहुत बार असहज माहौल को झेलना भी पड़ा। लेकिन, हिम्मत नहीं हारी।
अमरीका का नाम भी नहीं सुन पाती पायल के पिता पप्पूराम ने बताया कि पायल छोटी उम्र से ही अलग थी। जब वह 11 साल की थी। उस समय गांव में कहीं कोई धार्मिक कार्यक्रम होता तो मुझे जबर्दस्ती लेकर जाती। भजन-गीतों में नाचने लगती थी। बाद में बाल विवाह रोकने व बालिकाओं को स्कूल से जोडऩे की धुन सवार हो गई। घर में वह सब बहिन-भाइयों को समझाती है। दादी का पूरा ख्याल रखती है। दादी गैंदी ने कहा कि पायल जैसा कोई नहीं। वहीं उसे रोजाना नहलाती व कपड़े धोती है। मां राजो ने कहा कि बेटी का ब्याह नहीं रुकता तो ये सब देखने को नहीं मिलता। अब तो मैं हर मां से कहना चाहती हूं कि बेटियों को समझें। उनको आगे बढऩे का अवसर दें। गरीब-अमीरी का अन्तर भी खत्म होता नजर आएगा।
पहले 10 साल में शादी, अब कोई बाल विवाह नहीं गांव के निवासी प्रहलाद गुर्जर ने कहा कि बेटी ने कमाल किया है। पूरे गांव में अब बाल विवाह नहीं होते। जबकि पहले आठ से दस साल की बालिकाओं की शादी हो जाती थी। 11 साल की उम्र में खुद पायल की शादी की तैयारी थी लेकिन, उसके विरोध के बाद शादी नहीं हो सकी। सत्येन्द्र ने कहा कि असल में यह बड़ी उपलब्धि है। आसपास के ग्रामीण बहुत खुश हैं। अन्य बच्चों को बहुत प्रेरणा मिली है। समाज में बड़ा संदेश गया है। अब हर कोई बाल विवाह व बाल मजदूरी के खिलाफ है।
ज्योति, बबली बोलीं, अब पता चला इतना बड़ा काम हुआ पायल की बहन बबली व ज्योति बोलीं- अब हमारी आंखें खुल गई। उनके सामाजिक कार्यों का महत्व भी समझ आया है। पायल हमें अपने साथ लेकर जाती। गांव की बालिकाओं से मिलती। कहीं भी लगता कि कोई छात्रा स्कूल जाने से रह गई है तो उसके परिवार से मिलते। शुरू में बड़ा अटपटा लगा लेकिन, बाद में हमारी रुचि बढ़ती गई।