कहा जाता है कि यहां पहले शिव परिवार की नीलम की छोटी प्रतिमाएं थी, जिन्हें राजा प्रतापसिंह युद्ध के समय ले जाते थे और युद्ध जीतने के बाद यहीं पधरा देते थे। ऐसे में उनकी रानी ने राजा से कहा कि आप शिवजी की प्रतिमा को युद्ध में साथ ले जाते हो तो हम उनकी पूजा कैसे करे। तब राजा ने रानी से कहा कि ऐसी बात है तो आप एक अन्य शिवालय का निर्माण और करवा लो। जिससे आप पूजा कर सको। तब रानी ने इस दूसरे शिवालय का निर्माण करवाया, जिसके कारण इसका नाम रानी के नाम पर रूपेश्वर महाराज मंदिर पड़ा।
नवरात्र में करणी माता के मेले के समय मंदिर में श्रदालुओं का आना-जाना लगा रहता है। पंडित प्रदीप मिश्रा बताते हैं कि उनके द्वारा नवरात्रि में पूजा-अर्चना की जाती है। नित्यप्रति पूजा की बात की जाए तो उमेश अग्रवाल की ओर से मंदिर में पूजा-पाठ का जिम्मा लिया हुआ है।